गीता प्रेस, गोरखपुर >> भगवान के रहने के पाँच स्थान भगवान के रहने के पाँच स्थानजयदयाल गोयन्दका
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प्रस्तुत है भगवान के रहने का पाँच स्थान....
ब्राह्मणने पूछा-भगवन्! ऐसा पाप करके मनुष्यका उससे किस प्रकार उद्धार हो सकता है?
श्रीभगवान् ने कहा-उपर्युक्त स्त्रियोंके साथ समागम करनेवाला पुरुष लोहेकी स्त्री-प्रतिमा बनवाकर उसे आगमें खूब तपाये, फिर उसका गाढ़ आलिङ्गन करके प्राणत्याग दे और शुद्ध होकर परलोककी यात्रा करे। जो मनुष्य गृहस्थाश्रमका परित्याग करके मुझमें मन लगाता है और प्रतिदिन मेरे ‘गोविन्द' नामका स्मरण करता है, उसके सब पापोंका नाश हो जाता है। उसके द्वारा की हुई हजारों ब्रह्महत्याएँ, सौ बार किया हुआ गुरुपत्नी-समागम, लाख बार किया हुआ पैष्टी मदिराका सेवन, सुवर्णकी चोरी, पापियोंके साथ चिरकालतक संसर्ग रखना—ये तथा और भी जितने बड़े-बड़े पाप एवं पातक हैं, वे सब मेरा नाम लेनेसे तत्काल नष्ट हो जाते हैं, ठीक उसी तरह जैसे अग्निके पास पहुँचनेपर रूईके ढेर जल जाते हैं। अतः मनुष्यको उचित है कि वह मेरे ‘गोविन्द' नामका स्मरण करके पवित्र हो जाय। [परन्तु जो नामके भरोसे पाप करता है, नाम उसकी रक्षा कभी नहीं करता।] अथवा जो प्रतिदिन मुझ गोविन्दका कीर्तन और पूजन करते हुए गृहस्थाश्रममें निवास करता है, वह पापसे तर जाता है। तात! गङ्गाके रमणीय तटपर चन्द्रग्रहणकी मङ्गलमयी बेलामें करोड़ों गोदान करनेसे मनुष्यको जो फल मिलता है, उससे हजार-गुना अधिक फल ‘गोविन्द' का कीर्तन करनेसे प्राप्त होता है। कीर्तन करनेवाला मनुष्य मेरे वैकुण्ठधाममें सदा निवास करता है।
यो वै गृहाश्रमं त्यक्त्वा मच्चित्तो जायते नरः।
नित्यं स्मरति गोविन्दं सर्वपापक्षयो भवेत्।।
ब्रह्महत्यायुतं तेन कृतं गुर्वङ्गनागमः।
शतं शतसहस्रं च पैष्टीमद्यस्य भक्षणम्॥
स्वर्णादेर्हरणं चैव तेषां संसर्गकश्चिरम्।
एतान्यन्यानि पापानि महान्ति पातकानि च।
अग्निं प्राप्य यथा तूलं तृणमाशु प्रणश्यति।
तस्मान्मन्नाम गोविन्दं स्मृत्वा पूतो भवेन्नरः।।
यो वा गृहाश्रमे तिष्ठेन्नित्यं गोविन्दघोषणम्।
कृत्वा च पूजयित्वा च स पापात्संतरो भवेत्।।
भागीरथीतटे रम्ये खगस्य ग्रहणे शिवे।
गवां कोटिप्रदानेन यत्फलं लभते नरः।।
तत्फलं समवाप्नोति सहस्रं चाधिकं च यत्।
गोविन्दकीर्तने तात मत्पुरे चाक्षयं वसेत्।।
(पद्मपु°, सृष्टिख० ४९।५०-५६)
पुराणों में मेरी कथा सुननेसे मानव मेरी समानता प्राप्त करता है। जो पुराणकी कथा सुनाता है, उसे मेरा सायुज्य प्राप्त होता है; अतः प्रतिदिन पुराणका श्रवण करना चाहिये। पुराण धर्मोका संग्रह है।
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