गीता प्रेस, गोरखपुर >> भगवान के रहने के पाँच स्थान भगवान के रहने के पाँच स्थानजयदयाल गोयन्दका
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प्रस्तुत है भगवान के रहने का पाँच स्थान....
विप्रवर! अब मैं सती स्त्रियों में जो अत्यन्त उत्कृष्ट गुण होते हैं, उनका वर्णन करता हूँ। सती स्त्रीका वंश शुद्ध होता है। वहाँ सदा लक्ष्मी निवास करती हैं। सतीके पितृकुल और पतिकुल- दोनों कुलोंको तथा उसके स्वामीको भी स्वर्गलोककी प्राप्ति होती है। जो स्त्रियाँ अपने जीवनका पूर्वकाल पुण्य-पाप-मिश्रित कर्मों में व्यतीत करके पीछे भी पतिव्रता होती हैं, उन्हें भी मेरे लोककी प्राप्ति हो जाती है। जो स्त्री अपने स्वामीका अनुगमन करती है, वह शराबी, ब्रह्महत्यारे तथा सब प्रकारके पापोंसे लदे हुए पतिको भी पापमुक्त करके अपने साथ स्वर्गमें ले जाती है। जो मरे हुए पतिके पीछे प्राण-त्याग करके जाती है, उसे स्वर्गकी प्राप्ति निश्चित है। जो नारी पतिका अनुगमन करती है, वह मनुष्यके शरीरमें जितने (साढ़े तीन करोड़) रोम होते हैं, उतने ही वर्षोंतक स्वर्गलोकमें निवास करती है। यदि पतिकी मृत्यु कहीं दूर हो जाय तो उसका कोई चिह्न पाकर जो स्त्री चिताकी अग्निमें प्राण-त्याग करती है, वह अपने पतिका पापसे उद्धार कर देती है। जो स्त्री पतिव्रता होती है, उसे चाहिये कि यदि पतिकी मृत्यु परदेशमें हो जाय तो उसका कोई चिह्न प्राप्त करे और उसे ही ले अग्निमें शयन करके स्वर्गलोककी यात्रा करे। यदि ब्राह्मण जातिकी स्त्री मरे हुए पतिके साथ चिताग्निमें प्रवेश करे तो उसे आत्मघातका दोष लगता है। जिससे न तो वह अपनेको और न अपने पतिको ही स्वर्गमें पहुँचा पाती है। इसलिये ब्राह्मण जातिकी स्त्री अपने मरे हुए पतिके साथ जलकर न मरे—यह ब्रह्माजीकी आज्ञा है। ब्राह्मणी विधवाको वैधव्य-व्रतका आचरण करना चाहिये। जो विधवा एकादशीका व्रत नहीं रखती, वह दूसरे जन्ममें भी विधवा ही होती है तथा प्रत्येक जन्ममें दुर्भाग्यसे पीड़ित रहती है। मछली-मांस खाने और व्रत न करनेसे वह चिरकालतक नरकमें रहकर फिर कुत्तेकी योनिमें जन्म लेती है। जो कुलनाशिनी विधवा दुराचारिणी होकर मैथुन कराती है, वह नरकयातना भोगनेके पश्चात् दस जन्मोंतक गीधिनी होती है, फिर दो जन्मोंतक लोमड़ी होकर पीछे मनुष्ययोनिमें जन्म लेती है। उसमें भी बाल-विधवा होकर दासीभावको प्राप्त होती है।
ब्राह्मणने कहा- भगवन्! यदि आपका मुझपर अनुग्रह है तो अब कन्यादानके फलका वर्णन कीजिये। साथ ही उसकी यथार्थ विधि भी बतलाइये।
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