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गीता प्रेस, गोरखपुर >> भगवान के रहने के पाँच स्थान

भगवान के रहने के पाँच स्थान

जयदयाल गोयन्दका

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :43
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1083
आईएसबीएन :81-293-0426-0

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प्रस्तुत है भगवान के रहने का पाँच स्थान....

तदनन्तर वह शूद्र दिव्य आभूषण और दिव्य वस्त्रोंसे सुशोभित हो सहसा परिवारसहित स्वर्गको चला गया। इस प्रकार उस शूद्रपरिवारके सब लोग लोभ त्याग देनेके कारण स्वर्ग सिधारे। बुद्धिमान् तुलाधार धर्मात्मा हैं, वे सत्यधर्ममें प्रतिष्ठित हैं। इसीलिये देशान्तरमें होनेवाली बातें भी उन्हें ज्ञात हो जाती हैं। तुलाधारके समान प्रतिष्ठित व्यक्ति देवलोकमें भी नहीं है। जो मनुष्य सब धर्मों में प्रतिष्ठित होकर इस पवित्र उपाख्यानका श्रवण करता है, उसके जन्म-जन्मके पाप तत्काल नष्ट हो जाते हैं। एक बारके पाठसे उसे सब यज्ञोंका फल मिल जाता है। वह लोकमें श्रेष्ठ और देवताओंका भी पूज्य होता है।

व्यासजी कहते हैं—तदनन्तर, मूक चाण्डाल आदि सभी धर्मात्मा परमधाम जानेकी इच्छासे भगवान् के पास आये। उनके साथ उनकी स्त्रियाँ तथा अन्यान्य परिकर भी थे। इतना ही नहीं, उनके घरके आस-पास जो छिपकलियाँ तथा नाना प्रकारके कीड़े-मकोड़े थे, वे देवस्वरूप होकर उनके पीछे-पीछे जानेको उपस्थित थे। उस समय देवता, सिद्ध और महर्षिगण ‘धन्य-धन्य' के नारे लगाते हुए फूलोंकी वर्षा करने लगे। विमानों और वनों में देवताओंके नगाड़े बजने लगे। वे सब महात्मा अपने-अपने विमानपर आरूढ़ हो विष्णुधामको पधारे। ब्राह्मण नरोत्तमने यह अद्भुत दृश्य देखकर श्रीजनार्दनसे कहा-‘देवेश! मधुसूदन!! मुझे कोई उपदेश दीजिये।'

श्रीभगवान् बोले–तात! तुम्हारे माता-पिताका चित्त शोकसे व्याकुल हो रहा है, उनके पास जाओ। उनकी यत्नपूर्वक आराधना करके तुम शीघ्र ही मेरे धाममें जाओगे। माता-पिताके समान देवता देवलोकमें भी नहीं हैं। उन्होंने शैशवकालमें तुम्हारे घिनौने शरीरका सदा पालन किया है। उसका पोषण करके बढ़ाया है। तुम अज्ञानदोषसे युक्त थे, माता-पिताने तुम्हें सज्ञान बनाया है। चराचर प्राणियोंसहित समस्त त्रिलोकीमें भी उनके समान पूज्य कोई नहीं है।

व्यासजी कहते हैं—तदनन्तर देवगण मूक चाण्डाल, पतिव्रता शुभा, तुलाधार वैश्य, सज्जनाद्रोहक और वैष्णव संत-इन पाँचों महात्माओंको साथ ले प्रसन्नतापूर्वक भगवान् की स्तुति करते हुए वैकुण्ठधाममें पधारे। वे सभी अच्युतस्वरूप होकर सम्पूर्ण लोकोंके ऊपर स्थित हुए। नरोत्तम ब्राह्मणने भी यत्नपूर्वक माता-पिताकी आराधना करके थोड़े कालमें ही कुटुम्बसहित भगवद्धामको प्राप्त किया। शिष्यगण! यह पाँच महात्माओंका पवित्र उपाख्यान मैंने तुम्हें सुनाया है। जो इसका पाठ अथवा श्रवण करेगा, उसकी कभी दुर्गति नहीं होगी। वह ब्रह्महत्या आदि पापोंसे कभी लिप्त नहीं हो सकता। मनुष्य करोड़ों गोदान करनेसे जिस फलको प्राप्त करता है, पुष्कर तीर्थ और गङ्गा नदीमें स्नान करनेसे उसे जिस फलकी प्राप्ति होती है, वही फल एक बार इस उपाख्यानके सुननेमात्रसे मिल जाता है।

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    अनुक्रम

  1. अमूल्य वचन
  2. भगवानके रहनेके पाँच स्थान : पाँच महायज्ञ
  3. पतिव्रता ब्राह्मणीका उपाख्यान
  4. तुलाधारके सत्य और समताकी प्रशंसा
  5. गीता माहात्म्य

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