गीता प्रेस, गोरखपुर >> धर्म क्या है भगवान क्या हैं धर्म क्या है भगवान क्या हैंजयदयाल गोयन्दका
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प्रस्तुत पुस्तक में धर्म क्या है और भगवान क्या है पर प्रकाश डाला गया है।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
ॐ श्रीपरमात्मने नम:
धर्म क्या है ?
प्र.- कृपापूर्वक आप धर्म की व्याख्या करें।
उ.- धर्म की सच्ची व्याख्या कर सकें ऐसे पुरुष इस जमाने में मिलने कठिन हैं।
प्र.- आप जैसा समझते हैं वैसा ही कहने की कृपा करें।
उ.- धर्म का विषय बड़ा गहन है, मुझको धर्मग्रन्थों का बहुत ज्ञान है, वेद का तो मैंने प्राय: अध्ययन ही नहीं किया। मैं तो एक साधारण मनुष्य हूँ, ऐसी अवस्था में धर्म का तत्त्व कहना एक बालकपन-सा है। इसके अतिरिक्त मैं जितना कुछ जानता हूँ उतना ही कह नहीं सकता; क्योंकि जितना जानता हूँ स्वयं कार्य में परिणत नहीं कर सकता।
प्र.- खैर, यह बतलाइये कि आप किसको धर्म मानते हैं ?
उ.- जो धारण करने योग्य है।
प्र.- धारण करने योग्य क्या है ?
उ.- इस लोक और परलोक में कल्याण करने वाली महापुरुषों द्वारा दी हुई शिक्षा।
प्र.- महापुरुष कौन है ?
उ.- परमात्मा के तत्त्व को यथार्थरूप से जाननेवाले तत्त्ववेत्ता पुरुष।
प्र.- उनके लक्षण क्या हैं ?
उ.- धर्म की सच्ची व्याख्या कर सकें ऐसे पुरुष इस जमाने में मिलने कठिन हैं।
प्र.- आप जैसा समझते हैं वैसा ही कहने की कृपा करें।
उ.- धर्म का विषय बड़ा गहन है, मुझको धर्मग्रन्थों का बहुत ज्ञान है, वेद का तो मैंने प्राय: अध्ययन ही नहीं किया। मैं तो एक साधारण मनुष्य हूँ, ऐसी अवस्था में धर्म का तत्त्व कहना एक बालकपन-सा है। इसके अतिरिक्त मैं जितना कुछ जानता हूँ उतना ही कह नहीं सकता; क्योंकि जितना जानता हूँ स्वयं कार्य में परिणत नहीं कर सकता।
प्र.- खैर, यह बतलाइये कि आप किसको धर्म मानते हैं ?
उ.- जो धारण करने योग्य है।
प्र.- धारण करने योग्य क्या है ?
उ.- इस लोक और परलोक में कल्याण करने वाली महापुरुषों द्वारा दी हुई शिक्षा।
प्र.- महापुरुष कौन है ?
उ.- परमात्मा के तत्त्व को यथार्थरूप से जाननेवाले तत्त्ववेत्ता पुरुष।
प्र.- उनके लक्षण क्या हैं ?
उ.- अद्वेष्टा सर्वभूतानां मैत्र: करुण एव च।
निर्ममो निरहंकार: समदु:खसुख: क्षमी।।
संतुष्ट सततं योगी यतात्मा दृढ़निश्चय:।
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्यो मद्भक्त: स मे प्रिय:।।
निर्ममो निरहंकार: समदु:खसुख: क्षमी।।
संतुष्ट सततं योगी यतात्मा दृढ़निश्चय:।
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्यो मद्भक्त: स मे प्रिय:।।
(गीता 12/13-14)
‘जो सब भूतों में द्वेष रहित एवं स्वार्थरहित सबका प्रेमी और
हेतुरहित दयालु है तथा ममता से रहित एवं अहंकार से रहित सुख-दु:खों की
प्राप्ति में सम और क्षमावान् है अर्थात् अपराध करने वाले को भी अभय
देनेवाला है।’
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