भारतीय जीवन और दर्शन >> अभिज्ञानशाकुन्तलम्-कालिदास विरचित अभिज्ञानशाकुन्तलम्-कालिदास विरचितसुबोधचन्द्र पंत
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शकुन्तला के प्रति महर्षि कण्व का अपनी औरस पुत्री जैसा स्नेह था। वे उसकी
प्रसन्नता का सब सामान अपने आश्रम में जुटाते रहे।
'अभिज्ञान शाकुन्तलम्' में इसी शकुन्तला के जीवन को संक्षेप में चित्रित
किया गया है। इसमें अनेक मार्मिक प्रसंगों को उल्लेख किया गया है।
एक उस समय, जब दुष्यन्त और शकुन्तला का प्रथम मिलन होता है। दूसरा
उस समय, जब कण्व शकुन्तला को अपने आश्रम से पतिगृह के लिए विदा करते हैं।
उस समय तो स्वयं ऋषि कहते हैं कि मेरे जैसे ऋषि को अपनी पालिता
कन्या में यह मोह है तो जिनकी औरस पुत्रियां पतिगृह के लिए विदा होती हैं
उस समय उनकी क्या स्थिति होती होगी।
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