भारतीय जीवन और दर्शन >> अभिज्ञानशाकुन्तलम्-कालिदास विरचित अभिज्ञानशाकुन्तलम्-कालिदास विरचितसुबोधचन्द्र पंत
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राजा : लीजिए, मैंने उतार लिया अपना बाण। (इस प्रकार कहकर अपने कथन को
पूरा करता है।)
वैखानस : पुरुवंश के दीपक, आप जैसे पुरुष को यही शोभा देता है।
क्योंकि-
जिसने पुरुवंश में जन्म ग्रहण किया है, उसका यही उचित रूप है। हमारी भगवान
से प्रार्थना है कि आपको ऐसे ही गुणों वाला चक्रवर्ती पुत्र प्राप्त हो।
दोनों शिष्य : (अपने हाथ उठाकर) आप सब प्रकार से चक्रवर्ती पुत्र को
प्राप्त करें।
राजा : (प्रणाम करके) आपका आशीर्वाद शिरोधार्य है।
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