भारतीय जीवन और दर्शन >> अभिज्ञानशाकुन्तलम्-कालिदास विरचित अभिज्ञानशाकुन्तलम्-कालिदास विरचितसुबोधचन्द्र पंत
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राजा : क्या कुलपति जी महाराज वहां विराजमान हैं?
वैखानस : अभी थोड़ी देर पहले तक तो वे यहीं थे। अब वह अपनी सुकन्या
शकुन्तला को अतिथि-सत्कार का कार्य सौंपकर स्वयं उसके खोटे ग्रहों की
शांति करने के लिए सोमतीर्थ को प्रस्थान कर गये हैं।
राजा : ठीक है, मैं उन्हीं से भेंट कर लूंगा। वह बाद में महर्षिजी को बता
देंगी कि महर्षिजी में कितनी मेरी अगाध भक्ति है।
वैखानस : हाँ, यही ठीक है। आप आश्रम में जाइए, हम लोग समिधाओं के चयन के
लिए प्रस्थान करते हैं।
[वैखानस आदि का प्रस्थान]
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