भारतीय जीवन और दर्शन >> अभिज्ञानशाकुन्तलम्-कालिदास विरचित अभिज्ञानशाकुन्तलम्-कालिदास विरचितसुबोधचन्द्र पंत
|
|
राजा : सारथि! घोड़ों को आश्रम की ओर बढ़ाओ। आज इस आश्रम के दर्शन करके अपनी
आत्मा को ही पवित्र कर लें।
सारथी : जैसी आयुष्मान की आज्ञा।
[सारथी रथ को वेग से दौड़ाता है।]
राजा : (चारों ओर देखकर) सारथी! देखो। चारों ओर के वातावरण को देखकर, बिना
बताये ही यह सहज समझ में आ जाता है कि हम किसी आश्रम के तपोवन में पहुंच
गये हैं।
सारथी : वह किस प्रकार?
|
लोगों की राय
No reviews for this book