भारतीय जीवन और दर्शन >> अभिज्ञानशाकुन्तलम्-कालिदास विरचित अभिज्ञानशाकुन्तलम्-कालिदास विरचितसुबोधचन्द्र पंत
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राजा : (मन-ही-मन) क्या यही महर्षि कण्व की कन्या है? लगता है महात्मा
कण्व बड़े निर्दयी हैं। उन्होंने ऐसी सुकुमार कन्या को आश्रम के इस प्रकार
के कामों में लगा दिया है।
जो महर्षि कण्व इसके सहज सुन्दर शरीर को तपस्या के लिए साधना चाह रहे हैं
वे वास्तव में नीले कमल की पंखुड़ी की धार से शमी का वृक्ष काटने का उपक्रम
कर रहे हैं।
होगा-जब तक यह सिंचाई करती है, तब तक इसको इस ओट में ही खड़ा रहकर देखता
हूं।
[ऐसा ही करता है।]
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