भारतीय जीवन और दर्शन >> अभिज्ञानशाकुन्तलम्-कालिदास विरचित अभिज्ञानशाकुन्तलम्-कालिदास विरचितसुबोधचन्द्र पंत
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सेनापति : जैसी स्वामी की आज्ञा हो। मैं हांका लगाने वालों को वापस बुलवा
लेता हूं।
विदूषक : तुम्हारी इस प्रकार के उत्साह की बातों का नाश हो।
[सेनापति चला जाता है।]
राजा : (अपने सेवकों की ओट देखकर) अब तुम लोग भी अपने-अपने आखेट के वस्त्र
उतार डालो।
(रैवतक को देखकर]
हां रैवतक! जाओ, तुम भी अपना काम करो।
रैवतक : जैसी देव की आज्ञा।
[सब जाते हैं।]
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