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रंगमंच का जनतंत्र

हृषीकेश सुलभ

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :248
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 12476
आईएसबीएन :9788126717842

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"हिंदी यथार्थवाद के बदलते दृष्टिकोण से मानव अस्तित्व और भावनाओं की गहराईयों की खोज।"

हृषिकेश सुलभ के नए कथा संकलन ‘हलंत’ की कहानियां हिंदी की यथार्थवादी कथा-परंपरा का विकास प्रस्तुत करती हैं। इन कहानियों में भारतीय समाज की परंपरा, जीवनदृष्टि, समसामयिक यथार्थ और चिंताओं की अभिव्यक्ति के साथ-साथ विकृतियों और विसंगतियों का भी चित्रण है। मनुष्य की सत्ता और प्रवृति की भीतरी दुर्गम राहों से गुजरते हुए भविष्य के पूर्वाभासों और संकेतों को रेखांकित करने की कलात्मक कोशिश इन कहानियों की अलग पहचान बनती है। यथार्थ के अंतःस्तरों के बीच से ढेरों ऐसे प्रसंग स्वतः स्फूर्ति उगते चलते हैं, जो हमारे जीवन की मार्मिकता को विस्तार देते हैं। संचित अतीत की ध्वनियाँ यहाँ संवेदन का विस्तार करती हैं और इसी अतीत की समयबद्धता लांघकर यथार्थ जीवन की विराटता को रचता है।

हृषिकेश सुलभ की कहानियां भाषा और शिल्प के स्तर पर नए भावबोधों के सम्प्रेषण की नई प्रविधि विकसित करती हैं। नई अर्थछवियों को उकेरने के क्रम में इन कहानियों का शिल्प पाठकों को कहीं आलाप की गहराई में उतारता है, तो कहीं लोकलय की मार्मिकता से सहज ही जोड़ देता है। जीवन के स्पंदन को कथा-प्रसंगों में ढालती और जीवन की संवेदना को विस्तृत करती ये कहानियां पाठकों से आत्मीय और सघन रिश्ता बनाती हैं। हृषिकेश सुलभ के कथा-संसार में एकांत के साथ-साथ भीड़ की हलचल भी है। सपनों की कोमल छवियों के साथ चिलचिलाती धूप का सफ़र है। पसीजती हथेलियों की थरथराहट है, तो विश्वास से लहराते हाथों की भव्यता भी है। भावनाओं और संवेदनाओं के माध्यम से अपना आत्यंतिक अर्थ अर्जित करती इन कहानियों में क्रूरता और प्रपंच के बीच भी जीवन का बिरवा उग आता है, जो मनुष्य की संवेदना के उत्कर्ष और जिजीविषा की उत्कटता को रेखान्कित करता है।

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