"क्या हुआ?" सहसा वज्रपात के समान डैडी का स्वर सुनाई दिया।
डैडी यानी कानपुर सेशन्स कोर्ट के महामान्य जज, शुक्ला साहब । सुधीर वहां
से खिसकने का इरादा कर ही रहा था कि वे अपना तहकीकाती सवाल दुहराते आ
पहुंचे।
"क्या हुआ? सुधीर ने कुछ कहा ?" वज्र ने दूसरी चोट की।
"सुधीर बो.. ओ..ओ..ओ...'ला... धू''ऊं... सा. बोओ ...ला..आ.. आ..," रेवा
रोते-रोते बतलाने लगी तो रुँधे कण्ठ से निकल रहे शब्दों में जज साहब ने
केवल सुधीर का नाम पहचाना । रेवा की बात खत्म भी न हो पाई थी कि एक झपेट
में उन्होंने सुधीर का कान पकड़ लिया और उसे अन्दर घसीट ले चले। "बदतमीज़
! लड़की पर हाथ उठाता है!"
बात सुधीर से कही गई थी पर घिग्घी रेवा की बंध गई। वह डैडी के मुंह से ऐसी
आवाज सुनने की अभ्यस्त नहीं थी। रिरियाती-रिरियाती वह भी उनके पीछे हो ली।
"डैडी:. .. डी. ई...ई.. सुधी...ई...ई...र.. "र,"आंसुओं को घोंटकर वह पूरी
स्थिति समझाने की कोशिश करने लगी पर जितना वक्त वह चाहती थी उतना जज साहब
की घरेलू अदालत के पास नहीं था। अपने पढ़ने के कमरे के दरवाजे पर आकर
उन्होंने मुड़कर कहा, "तुम बाहर रहो," और सुधीर को अन्दर ले जाकर दरवाजा
बन्द कर लिया।
उसका रिरियाना एकदम रुक गया। अन्दर क्या हो रहा है, जानने की कोशिश में वह
कान भीतर लगाये रही। पर कोई आवाज बाहर नहीं आई। उसे लगा डैडी सधीर को लेकर
बन्द दरवाजे के पीछे छिपी गुफा में गायब हो गये हैं। जैसे आया की कहानियों
में दैत्य हो जाया करते हैं। पर डैडी तो दैत्य नहीं हैं। वो तो राजा की
तरह हैं, सुन्दर और प्यारे। रेवा को कितना प्यार करते हैं ! हमेशा पूछते
हैं, "किस चीज को मन कर रहा है तुम्हारा?' वैसे जैसे आया की कहानियों में
राजा अपनी छोटी, सबसे प्यारी राजकुमारी से पूछा करते हैं।
पता नहीं सुधीर के आते ही उनका प्यारा-प्यारा मुंह बिगड़ने क्यों लगता है
? मारते-पीटते उसे भी नहीं, पर मास्टर जी-से दिखने लगते हैं, उसके नहीं,
बड़ी लड़कियों को पढ़ाने वाले मास्टरजी। उसे डर लगने लगता है, कहीं उसके
देखते-देखते डैडी राजा से दैत्य न बन जाएं। और आज जैसे वह डरावना वक्त आ
ही गया। उसका मन कर रहा था, बन्द दरवाजे को जोर-जोर से हाथ मारकर खुलवा ले
। पर मारे दहशत के कुछ किये नहीं बनता था । अपने बस में कुछ न पाकर, वह
वहीं जमीन पर बैठकर दुबारा रोने लगी।
तभी दरवाजा खुला और सुधीर बाहर आ गया। उसका चेहरा तना हुआ था, हाथों की
मुट्ठियां बंधी हुईं, पर आंखों में आंसुओं की छाप तक नहीं थी। वह सीधा
रेवा के पास आया और तीखे स्वर में बोला, "रेवा की बच्ची, फिर जो कभी तुझे
साथ खिलाया !"
रोती हुई रेवा उससे लिपट गई, "डैडी ने मारा?"
"चल हट,” सुधीर ने उसे धक्का देकर हिकारत से कहा, "रोंदू कहीं की।"
उसकी फटकार सुन वह पूरी ताकत लगाकर आंसू पी गई और बोली, "मैं नहीं रोती।
अब खिलाओगे न ?"
"कभी नहीं।" "मैं डैडी से बोलूंगी, डैडी गन्दे, भैया अच्छे । "हट । जो
मर्जी आये कर।"
"खिलाओगे भैया, खिलाओगे ? खिलाओगे न?" रेवा चिरौरी करती गई और सुधीर का
गुस्सा उतर गया। रेवा को लेकर उसका गुस्सा ज्यादा देर नहीं टिकता। वह
जानता है, वह छोटी है, कमजोर है और उसे प्यार करती है । डैडी की बात और
है।
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