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रहस्य-रोमांच >> घर का भेदी

घर का भेदी

सुरेन्द्र मोहन पाठक

प्रकाशक : ठाकुर प्रसाद एण्ड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :280
मुखपृष्ठ : पेपर बैक
पुस्तक क्रमांक : 12544
आईएसबीएन :1234567890123

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अखबार वाला या ब्लैकमेलर?


"वो तानिया है, दुख्तरे नरेश चटवाल, दि कॉटन किंग?"
"हां"
अर्जुन ने उसकी तरफ हाथ हिलाया लेकिन ऐसा न लगा कि उसने उसका हिलता हाथ देखा हो।
"अकेली है।"-सुनील बोला।
"हां।"-अर्जुन एकाएक उठ खड़ा हुआ-"मैं मिल के आता हूं।"
सुनील ने सहमति में सिर हिलाया। दो मिनट बाद अर्जुन तानिया के साथ वापिस लौटा। संचिता उठ कर उससे बगलगीर होकर मिली।
"ये मिस्टर सुनील चक्रवर्ती हैं" वो बोली-“ब्लास्ट के चीफ रिपोर्टर होते हैं।"
"मैंने नाम सुना है।"
"बैठो, तुम्हारे लिये ड्रिंक मंगाते हैं।"
“अभी नहीं।"-वो जल्दी से बोली-“मुझे यहां किसी की तलाश है। मैं पहले उससे निपट लूं, फिर लौटती हूं यहां।"
“प्रामिस?"
“यस। प्रामिस। सी यू, अर्जुन । सी यू, मिस्टर सुनील।"
वो एड़िया ठकठकाती वहां से चली गयी।
"अक्सर आती है यहां।"--अर्जुन ने अपना ज्ञान बघारा।
"हां।"-सुनील अनमने भाव से बोला-“बताया था तूने।"
तभी स्टेज पर डांस शुरू हुआ। पांच मिनट खामोशी से गुजरे।
एकाएक सुनील ने अपना गिलास खाली किया और उठ खड़ा हुआ।
दोनों की प्रश्नसूचक निगाहें उसकी तरफ उठीं।
"गरजमंद तो हम हैं।" -सुनील बोला-"जब कुआं प्यासे के पास नहीं आ रहा तो प्यासे को कुएं के पास जाना चाहिये।"
“बात तो ठीक है आपकी!"-अर्जुन बोला।
"इस बार 'इस बार' नहीं कहा।" अर्जुन हंसा।
“हनीचाइल्ड"-सुनील संचिता से सम्बोधित हुआ-"चोपड़ा अगर क्लब में नहीं होगा तो कहां होगा?"
“वो शनील का पर्दो देख रहे हो”-संचिता ने एक तरफ संकेत किया-"जो छत से फर्श तक लटका हुआ है?"
"हां"
“उसके पीछे सीढ़ियां हैं। उसके ऊपरी सिरे पर उसका आफिस है। वो होगा तो वहीं होगा। वहां न हुआ तो समझना कि क्लब में नहीं है।"
"मैं हो के आता हूं।"
सुनील निर्दिष्ट दिशा में बढ़ा। शनील का पर्दा हटा कर उसने उसके पीछे कदम रखा तो वहां नीमअन्धेरा पाया। वहां सीढ़ियों के दहाने पर एक पहलवान जैसा सिर से गंजा आदमी खड़ा था।
"टायलेट इधर नहीं है।"-वो सख्ती से बोला।
"मुझे मालूम है।" -सुनील बोला। "तो!"
"रास्ते से हट! मैंने बॉस से मिलना है।"
"बॉस को आपके आने की खबर है?"
"नहीं।"
"फिर तो...."
"मेरा नाम सुनील है। ये मेरा कार्ड है। इसे बॉस के पास लेकर जा और 'फिर तो' का फैसला खुद करने की जगह उसे करने दे।"
उसने कार्ड लेकर उस पर निगाह डाली। "अंग्रेजी में छपा है। तेरी समझ में नहीं आयेगा।" उसने आग्नेय नेत्रों से उसकी तरफ देखा।
“यहीं रुकना।"-वो बोला- "ऊपर आने की कोशिश न करना वरना...."
“वरना क्या?"
"वरना ये।"
उसने कोट हटा कर पतलून की बैल्ट में खुंसी भारी रिवॉल्वर सुनील को दिखाई।
"ठीक है।"
वो आदमी घूम कर सीढ़ियां चढ़ गया। सुनील ने एक सिगरेट सुलगा लिया और प्रतीक्षा करने लगा। थोड़ी देर बाद वो आदमी वापिस लौटा।
"जाओ।"-वो बोला।
“कहां जाऊं?" -सुनील बोला।
"ऊपर। ऊपर मालिक हैं। वहां।"
सहमति में सिर हिलाता सुनील आगे बढ़ा।

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