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रहस्य-रोमांच >> घर का भेदी

घर का भेदी

सुरेन्द्र मोहन पाठक

प्रकाशक : ठाकुर प्रसाद एण्ड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :280
मुखपृष्ठ : पेपर बैक
पुस्तक क्रमांक : 12544
आईएसबीएन :1234567890123

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अखबार वाला या ब्लैकमेलर?


ऊपर एक बन्द दरवाजा था जिस पर एक बार दस्तक देकर उसने उसे खोला।
वहां एक बहुत बड़ी टेबल के पीछे एग्जीक्यूटिव चेयर पर। एक कोई पैंतालीस साल का सूट बूट में सजा धजा क्रूर चेहरे वाला आदमी बैठा था।
"आओ।" ---वो बोला।
"निरंजन चोपड़ा?"--सुनील ने पूछा।
"ऐट युअर सर्विस । आओ।"
सुनील उसकी मेज के करीब पहुंचा। "बैठो।"
सुनील एक कुर्सी पर ढेर हुआ। उसने आसपास निगाह दौड़ाई तो पाया कि पीछे एक दरवाजा था लेकिन वो बन्द था।
"तो तुम हो 'ब्लास्ट' वाले सुनील।"-चोपड़ा बोला-"काफी नाम सुना है मैंने तुम्हारा । सुना है तुम्हारी स्पैशलिटी दूसरे के फटे में टांग अड़ाना है।"
"ऐसी कोई बात नहीं।"
"क्या चाहते हो?"
"ब्लास्ट' को एक टिप मिली है। उस बाबत तुम से बात करना चाहता हूं।"
"कैसी टिप? कैसी बात?"
"टिप विक्रम कनौजिया के बारे में है। जानते हो न उसे?"
"आगे बढ़ो।"
"वो कभी तुम्हारा पार्टनर हुआ करता था।"
"तो?"
"सुना है तीन साल पहले एकाएक वो इस फानी दुनिया से रुखसत हो गया था या"-सुनील एक क्षण ठिठका और फिर बोला-"रुखसत कर दिया गया था। किसने किया था ऐसा?"
"कैसा?"
"किसने उसकी ऊपर वाले के घर जबरन रवानगी का इन्तजाम किया था ?"
"मुझे नहीं मालूम। लेकिन होगा ये काम जरूर किसी नौजवान बेटी के बाप का या किसी हसीन बीवी के मियां का। कनौजिया औरतों का रसिया था। पता नहीं क्या खूबी थी उसमें कि जिस औरत की तरफ भी एक बार आंख भर कर देख लेता था, वो बकरी की तरह मिमियाती उसके पीछे चली आती थी। मैंने उसे कई बार चेताया था कि दूसरे के खेत में मुंह मारने वाले 'सांड को लाठी पड़ती है लेकिन वो नहीं सुनता था। सच पूछो तो हमारी पार्टनरशिप टूटने की वजह ही ये थी कि क्लब में जो भी खूबसूरत लड़की कदम रखती थी, वो उसके पीछे पड़ जाता था। फिर आखिर वो उसी अंजाम को पहुंचा जिसका कि मुझे अन्देशा था।"
“अपनी बहन बेटी की इज्जत बचाने की खातिर किसी ने उसे शूट कर दिया?"
"हां"
"किसने?"
"क्या पता किसने? उसके कातिल का आज तक पता नहीं चला है। उस का कत्ल भी पुलिस के अनसुलझे केसों में शुमार है।
“अब ऐसा नहीं होगा। अब उस का शुमार सुलझे केसों में होगा।"
"क्या मतलब?"
"कातिल मेरे सामने बैठा है।"
"क्या बकते हो?"
सुनील ने बड़े ड्रामाई अन्दाज से अपने कोट की ऊपर की जेब से टाइपशदा कागज निकाला, उसे खोला और फिर उसे चोपड़ा के सामने मेज पर डाल दिया।
"ये क्या है?"-चोपड़ा हड़बड़ा कर बोला।
"देखो क्या है?"
"क्या है?"
"सबूत है। कत्ल का। कातिल के खिलाफ़।"
चोपड़ा ने कागज उठाकर उसकी इबारत पढ़ी, फिर पढ़ी।
"मेरा इससे क्या लेना देना है?"-फिर वो बोला।
"तुम्हारा ही तो लेना देना है, प्यारेलाल।"
"मेरा नाम प्यारेलाल नहीं, निरंजन चोपड़ा है।"
“निरंजन चोपड़ा यानी कि एन-सी । ये तहरीर गोपाल बतरा की है और इसमें उसने जिस एन. सी. का जिक्र किया है, वो तुम हो।"
"खामखाह! अरे, एन.सी. दर्जनों लोगों के नामों के प्रथमाक्षर हो सकते हैं।"
“मसलन लो कोई नाम!"
“भई, तीन साल पहले हुए कल से, जिसे कि दुनिया भूल भी चुकी है, आज तुम्हारा क्या लेना देना है?"
- "ये लेना देना है कि उसका दो दिन पहले हुए कत्ल से रिश्ता हो सकता है।"
"कैसे?"
"जिस शख्स ने विक्रम कनौजिया का कत्ल किया था, उसे गोपाल बतरा ब्लैकमेल कर रहा था। इसलिये कातिल ने एक और कत्ल कर दिया।"

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