कहानी संग्रह >> तुम कहो तो तुम कहो तोसीतेश आलोक
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ये कहानियाँ न तो किसी साँचे में ढलकर निकलती हैं और न किसी वाद अथवा पूर्वाग्रह के रंग में रँगकर आती हैं। मनो को छूनेवाली कोई भी घटना,कोई भी परिस्थिति,अवसर पाकर किसी स्मरणीय रचना का रूप ले लेती है।
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