योग >> योग निद्रा योग निद्रास्वामी सत्यानन्द सरस्वती
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योग निद्रा मनस और शरीर को अत्यंत अल्प समय में विक्षाम देने के लिए अभूतपूर्व प्रक्रिया है।
प्रत्यक्ष एवं सूक्ष्म संयोजन
योग निद्रा के प्रतीक संस्कारों से सीधे अथवा सूक्ष्म रूप से सम्बन्ध जोड़ कर अपना कार्य करते हैं। उदाहरण के तौर पर, जैसे अभ्यासियों को एक वृक्ष देखने को कहा जाता है। एक अभ्यासी अपने ही बगीचे के एक वृक्ष की कल्पना करता है। यह दृश्य से सीधा सम्बन्ध जोड़ना हुआ। इसके विपरीत हो सकता है दूसरा अभ्यासी वृक्ष को देखने में सफल ही न हो, पर उसे वृक्ष से गिरने की अपने बचपन की कोई घटना याद आ जाए। इसे सूक्ष्म सम्बन्ध कहते हैं।
एक वृक्ष का दृश्यावलोकन वृक्ष से सम्बद्ध इस पीड़ाजनक अनुभूति को उभार देता है जो बचपन से अव तक उसकी स्मृति में बनी हुई थी। इस प्रकार के सूक्ष्म सम्बन्धों से सम्बन्धित दृश्य योग निद्रा के अभ्यास में अधिक शक्तिशाली होते हैं। इस तरह से व्यक्ति के मन में बैठे हुए अनेक संस्कारों को निकाला जा सकता है और उन्हें साक्षी भाव से देखा जा सकता है। किन्तु इस प्रक्रिया में शिक्षक को प्रतीकों के चयन के प्रति अधिक जागरूक रहना पड़ेगा।
मंत्र, यंत्र, चक्र
प्रतीकों के भिन्न-भिन्न रूप मन की विभिन्न गहराईयों तक असर करते हैं। मंत्र और यंत्र का विज्ञान नाद और प्रतीकों का विज्ञान है जो चेतना की गहराई तक अपना असर डालता है। भिन्न प्रकार के चक्र, रंग, रूप, देवी-देवता, मंत्र आदि का निर्माण शारीरिक व आध्यात्मिक केन्द्रों से सम्बन्ध स्थापित करने के लिए किया गया है। जिसके परिणामस्वरूप व्यक्ति का उस चक्र की अभिव्यक्ति के सभी पक्षों से सूक्ष्म सम्बन्ध स्थापित होता है। वस्तुतः मानव-मस्तिष्क में संस्कार चक्र में प्रतीकित होते हैं। अत: चक्रों की प्रतीकात्मक खोज के द्वारा हम अपने संस्कारों की खोज कर उनका निर्मूलन करते हैं।
चक्र मनुष्य के ऊपरी शरीर में नहीं रहते; वे आत्मिक शरीर में निवास करते हैं जिन्हें बाह्य इन्द्रियों द्वारा अनुभव नहीं किया जा सकता है। इन्हें पहचानने के लिए मन की एक विभिन्न प्रक्रिया द्वारा अभ्यास किया जाता है। योग निद्रा में इन चक्रों को देखने का तरीका चेतना को सम्पूर्ण शरीर में घुमाने से और साँस के प्रति सजग रहने के द्वारा पूर्ण किया जाता है। यह तरीका मन को निग्रह और विश्राम देता है। वस्तुतः मन का पूर्ण बदल जाना ही गहन शान्ति व विश्राम की स्थिति है। जब यह अवस्था आ जाती है तब निर्देशक दृश्य देखने के कार्य में व्यक्ति को संलग्न कर देता है।
अब तक यह स्पष्ट हो चुका है कि योग निद्रा में निर्देशित कल्पना न केवल द्वन्द्व, वासनाओं, स्मृतियों, आदि के संस्कारों को हटाने के लिए एक शक्तिशाली अभ्यास है, वरन् यह व्यक्ति के अन्दर सोई हुई प्रतिभा के विकास का भी एक सबल माध्यम बन सकता है।
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