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योग निद्रा

स्वामी सत्यानन्द सरस्वती

प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :320
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 145
आईएसबीएन :0

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योग निद्रा मनस और शरीर को अत्यंत अल्प समय में विक्षाम देने के लिए अभूतपूर्व प्रक्रिया है।


सृजनात्मकता का जागरण


संसार के अधिकांश आविष्कार, कला, विज्ञान, संगीत अथवा धर्म आदि से सम्बन्धित निर्माण के नये कदम व्यक्ति के उन क्षणों की देन हैं जब वह चेतन की दीवार को पार कर अवचेतन द्वारा प्रेरित किया गया है। इसके कई उदाहरण प्रत्यक्ष हैं। न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत उसके मन में तब आया था जब वह एक सेव के वृक्ष के नीचे विश्राम कर रहा था। वेनगॉग ने कहा है, "स्वप्न की तरह तस्वीरें मेरे सामने आती हैं।" मोजार्ट ने एकदम नयी संगीत की धुन का निर्माण बग्घी में सोते हुए पूर्ण किया। आईन्स्टाइन को 'सापेक्षवाद' का प्रत्यक्ष ज्ञान तब हुआ था जब वे अपने को मानसिक रूप से सूर्य की किरणों के साथ-साथ चलते हुए देख रहे थे।

इन लोगों ने अपने मन को इतना विश्रान्त होने दिया कि इन्हें जीवन की समस्याओं का निदान अचेतन मन की आकृतियों के रूप में दिखने लगा। ऐसा भी पाया गया है कि पूर्ण शिथिलीकरण और अचेतन मन की आकृतियों को देखने से लोगों को अपनी बीमारी की सूचना वैद्यकीय परीक्षण के पहले ही मिल सकती है। चेतना के गहरे स्तरों में हमारी सभी समस्याओं का निदान विद्यमान रहता है, लेकिन उसे व्यक्त करने के लिए अपने अन्दर साक्षी-भाव रखने की क्षमता होनी चाहिए। कल्पना-शक्ति का बंधनरहित होना मनीषियों की एक प्रमुख क्षमता है। बच्चों में भी इस प्रकार की सहज कल्पना-शक्ति रहती है, लेकिन साधारणत: बढ़ती उम्र के साथ सांसारिक अनुभवों के कारण यह कुण्ठित हो जाती है।

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