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योग निद्रा

स्वामी सत्यानन्द सरस्वती

प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :320
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 145
आईएसबीएन :0

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योग निद्रा मनस और शरीर को अत्यंत अल्प समय में विक्षाम देने के लिए अभूतपूर्व प्रक्रिया है।


मानस-दर्शन की क्षमता के विभिन्न सोपान


योग निद्रा में मानस-दर्शन करने में एक प्रमुख समस्या है। हम सबमें यह क्षमता है कि हम मन में उभरने वाली आकृतियों को स्पष्ट रूप से देख सकें। लेकिन मन में विक्षेप होने से किसी एक बिन्दु की धारणा पर्याप्त समय तक नहीं की जा सकती और कोई भी आकृति मन में उभर नहीं सकती। इस स्थिति में मानस-दर्शन की सलाह नहीं दी जाती और केवल एक आकृति से सम्बन्धित अनुभवों का पुनः स्मरण करना ही लाभप्रद माना जाता है। अधिकतर लोग ऐसा आसानी से कर पाते हैं और यही प्रारंभिक कदम है।

इस अभ्यास को जारी रखने से चेतना अन्तर्मुखी होने लगती है और मन में विविध आकृतियाँ उभरने लगती हैं। प्रारंभ में ये आकृतियाँ अधिक समय तक स्थिर नहीं रहेंगी अथवा उनके आकार में परिवर्तन होने लगेगा, परन्तु अभ्यास को सहज रूप से जारी रखना चाहिये और आकृतियों को स्पष्ट एवं स्थिर रूप में देखने के लिए अत्यधिक प्रयत्न नहीं करना चाहिये। जब चेतना पूर्ण रूप से अन्तर्मुखी हो जाती है तो आप एकाग्रतापूर्वक स्पष्ट आकृतियाँ देखने में समर्थ हो सकेंगे। इस स्थिति में आकृतियाँ जीवन्त रूप में दिखाई देने लगती हैं।

वास्तव में मन में आकृतियाँ बिना प्रयास के उभरनी चाहिये। अनेक लोग कल्पना के द्वारा मानस-दर्शन करते हैं। वास्तव में आकृतियाँ देखते समय शिथिलीकरण एवं आकृतियों को चेतना में उभरने देना अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है; प्रयत्न या कल्पना का यहाँ स्थान नहीं है। यह अभ्यास सहज और स्वाभाविक रूप से होना चाहिये। स्वाभाविकता इस अभ्यास की कुंजी है।

इस अभ्यास को शुरू करते समय दैनिक जीवन की उन वस्तुओं एवं घटनाओं को देखना भी महत्त्वपूर्ण है जो मन पर गहरी छाप डालती हैं। चिदाकाश में आकृतियों का आकार जितना बड़ा हो सके, उतना अच्छा है। साथ ही उनका प्रकटीकरण भी जीवंत होना चाहिये। यदि आप से एक शेर का मानस-दर्शन करने को कहा जाता है तो किसी पिंजड़े के कोने में चुपचाप पड़े हुए शेर को नहीं, बल्कि जंगल में घूमते और गरजते हुए शेर को देखने का प्रयत्न कीजिये। प्रारंभ में चलित आकृतियों को उभारना ज्यादा आसान है। उसके बाद स्थिर आकृतियों को देख सकते हैं।

मानस-दर्शन में बेतुकी या हास्यास्पद चीजों को देखने में भी संकोच नहीं करना चाहिये। यदि आप एक हाथी को शीर्षासन करते हुए देखें तो वह भी ठीक है, बल्कि आप हाथी को कलाबाजी करते हुए भी देखने का प्रयत्न करें। आपको मानसिक जगत् में पूर्ण स्वातंत्र्य प्राप्त है और उसका उपयोग मानस-दर्शन में जरूर करना चाहिये।

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