योग >> योग निद्रा योग निद्रास्वामी सत्यानन्द सरस्वती
|
2 पाठकों को प्रिय 545 पाठक हैं |
योग निद्रा मनस और शरीर को अत्यंत अल्प समय में विक्षाम देने के लिए अभूतपूर्व प्रक्रिया है।
सूक्ष्म शरीर के अनुभव
योग निद्रा में अति सूक्ष्म कोषों का ज्ञान इन्द्रियज्ञान के विस्मृत हो जाने के बाद होता है। जैसे, व्यक्ति का स्थूल शरीर फेफड़े, दिल, पेट, नाड़ी-प्रवाह, रक्त-प्रवाहिनी केशिकाओं तथा पाचनक्रिया आदि विभिन्न अंगों एवं प्रक्रियाओं द्वारा संचालित होता है, उसी प्रकार सूक्ष्म शरीर के संचालन के अपने अलग विभाग हैं जिनके द्वारा स्थूल शरीर से ऊपर आने पर वह अपना कार्य करता रहता है।
प्राणिक अथवा आत्मिक शक्ति का प्रवाह नाड़ी और चक्रों के सधे-सधाये नियमों के आधार पर चलता है जो शरीर के स्थूल एवं सूक्ष्म शरीर को शक्ति प्रदान करते रहते हैं। नाड़ी का अर्थ है - प्रवाह, धारा, बहाव अथवा रास्ता। ऐसी नाड़ियों की संख्या योग में बहत्तर हजार कही गई है। इनमें से तीन अधिक महत्त्वपूर्ण मानी गयी हैं। इन्हें इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना नाड़ी कहते हैं। ये रीढ़ की हड्डी के अंदर दायें-बायें और बीच में प्रवाहित होती रहती हैं। इड़ा नाड़ी बायीं तरफ रहती है जिस पर सम्पूर्ण मानसिक विकास का भार रहता है। पिंगला रीढ़ के दायें तरफ प्रवाहित होती है, जिस पर स्थूल शरीर के संचालन का सम्पूर्ण भार रहता है।
सुषुम्ना, जो अति महत्त्वपूर्ण नाड़ी है, रीढ़ के बीच से प्रवाहित होती है। शारीरिक स्तर पर यह नाड़ी शिथिल रहती है। योग शास्त्रों में इस नाड़ी को शिथिल अथवा सुप्त नाड़ी कहा गया है, क्योंकि शरीर में आत्म-शक्ति का प्रवाहक कार्य यही करती है और इसे जगाना योग शास्त्र में एक साधना व अभ्यास का क्रम माना गया है।
इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना नाड़ियाँ मूलाधार चक्र से प्रारम्भ होती हैं। यह रीढ़ के निचले छोर के पास का स्थान है जहाँ से प्राणशक्ति का सम्बन्ध रहता है और जो मानव शरीर में जगायी जाती हैं। इसे सर्प की तरह माना जाता है जिसे कुण्डलिनी कहते हैं। यह कुण्डलिनी प्राणशक्ति के रूप में मूलाधार के ऊपर सोयी रहती है। पुरुष-शरीर में मूलाधार चक्र की स्थिति मूत्र-नली तथा मल-उत्सर्ग नली के बीच में रहती है। स्त्री में यह गर्भाशय के ऊपरी भाग में रहता है।
इड़ा व पिंगला नाड़ी का उद्गम स्थान मूलाधार के दोनों ओर से है। ये दोनों परस्पर बीच में रीढ़ की हड्डी को पार करती हुई क्रमश: चार चक्रों पर घूमती हुई आज्ञा चक्र तक पहुँचती हैं, जो रीढ़ की हड्डी के अंत में दोनों भौंहों के बीच में स्थित है। चार अन्य चक्रों के नाम ये हैं - स्वाधिष्ठान, जो रीढ़ की हड्डी के सिरे पर है। मणिपुर नाभि के पीछे है। अनाहत हृदय के पीछे है तथा विशुद्धि गले पर है।
सुषुम्ना नाड़ी आज्ञा चक्र और मूलाधार के बीच सीधी नाड़ी है। यह पृथ्वी से स्वर्ग को जोड़ने की एक सीढ़ी है। इड़ा व पिंगला नाड़ियाँ तो सदा कार्यरत रहती हैं तथा सुषुम्ना को भी अभ्यास द्वारा जगाया जा सकता है। योग में इसके जगाने की विधि दी गई है। इसको जगा लेने से ही व्यक्ति की आत्मिक शक्ति का विकास होता है।
|
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book