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जीवन कथाएँ >> मेरी भव बाधा हरो

मेरी भव बाधा हरो

रांगेय राघव

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1470
आईएसबीएन :9788170285243

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कवि बिहारीलाल के जीवन पर आधारित रोचक उपन्यास...


स्वामी नरहरिदास मुग्ध नेत्रों से देखते रहे।
पिता ने कहा, “केवल अनुप्रास और अन्योक्ति ही नहीं, जीवन का सत्य! मैं भी कितना भटका हुआ था। सब कुछ, जो भी मुझे करना था, मैं कर तो चुका, पर न जाने किस अज्ञान ने मेरी प्यास को बुझने ही नहीं दिया। रह-रहकर इस बिहारी का ही मुझे मोह सताता था कि यह क्या करेगा, लेकिन अब मैं वृद्ध हो गया हूं। मुझ जैसे टूटे छप्पर के नीचे बैठने वाले की आंधी-पानी से रक्षा तो क्या हो सकती है, उल्टे मेरे ही उसपर गिर जाने का भय अवश्य है।"

फिर रुककर कहा, "बस यह धन शेष है, महाराज!"
उन्होंने अशर्फियां निकालकर रख दी और कहा, “वह आएगा। यह दे दें उसे। आज मैं स्वतंत्र हुआ। अब बिहारी की भी मुझे चिन्ता नहीं रही। बुद्धिमान अपना मार्ग स्वयं खोज लेता है।"
"वह कब तक लौट आवेगा?"
"कल संझा को या परसों सवेरे तक।"
"तुम स्वयं उसे देकर जाना।"
"नहीं महाराज! अब कूप-तड़ाग में न बांधे। इतना संबल दिया है, तो ममता के बंधन तोड़ना भी सिखाएं।"

दूसरा दिन बीत गया। बिहारी नहीं आया।
ससुराल वालों ने उसे इज्जत से जबर्दस्ती रोक लिया। चौथे दिन जब तक वह पहुंचा, झोंपड़ी खाली पड़ी थी। घर गया। कोठे का कोना खुदा पड़ा था।
पालकी से उतरी हुई वधू आंगन के कोने में बैठी थी अकेली। सोलह का पति, चौदह की पत्नी।

फिर कहां होंगे!
ओह! ठीक है! स्वामी नरहरिदास के यहां होंगे।
बिहारी तेजी से पहुंचा।
स्वामी नरहरि बैठे कुछ पढ़ रहे थे।
प्रणाम किया।
"चिरंजीव रहो वत्स!" वृद्ध ने कहा, “अभी आए हो?"
"हां, महाराज!"
"तो देखो, वह कोने में जो धन है, वह तुम्हारा है, उसे ले लो!"
बिहारी आतुर आशंका से चिल्ला उठा, “दादा!"
'वे चले गए!"
"कहां!!!"
"उन्होंने संन्यास ले लिया बिहारी। उनका शोक न कर। वे अपना काम कर चुके। म्लेच्छों के आने से पहले ब्राह्मणों की यही परम्परा थी।"
“पर वे मुझसे छिपकर क्यों गए?"
“उन्हें डर था कि तुम्हारी ममता कहीं उन्हें रोक न ले।"
उस समय अंधेरा हो गया जब बिहारी घर लौटा। पत्नी ने दीप में तेल डालकर चकमक से बत्ती जला दी।
पिता की खड़ाऊं के अन्तिम चिह्न पर नई बहू के हाथ में जलाए दीपक का प्रकाश चमक उठा।

बिहारी का उजड़ा हुआ घर फिर बस गया था किन्तु वह अपने को रोक नहीं सका। पत्नी लाज से पूछ नहीं पाई किन्तु उसने देखा कि वह रो रहा था। पास आई और उसके सिर को अपने कंधे पर टिका लिया।

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