लोगों की राय

जीवन कथाएँ >> मेरी भव बाधा हरो

मेरी भव बाधा हरो

रांगेय राघव

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1470
आईएसबीएन :9788170285243

Like this Hindi book 3 पाठकों को प्रिय

147 पाठक हैं

कवि बिहारीलाल के जीवन पर आधारित रोचक उपन्यास...


"अरे!" सुशीला ने कहा, “तुमने सुना?"
"हूं!' बिहारी ने कहा।
"कुछ भी हो...' सुशीला ने अभी कहा ही था कि बिहारी ने बांके से कहा,
"जा, ले आ।"
वह चला गया।
दोनों भीतर आए।
दोनों ओर से पालागन हुई।
"विराजिए।"
दोनों बैठे। आश्चर्य से फटे हुए नेत्र । प्रशंसा से विह्वल क्षुद्रता की आत्मानुभूति।
काका ने हंसकर कहा, "आए तो खबर भी नहीं दी।"
बिहारी ने कहा, “सोचा जाने फुर्सत हो न हो।"
"हमको कब नहीं थी!" काका ने कहा।
बिहारी के तीर-सा लगा।
तो पुरानी बातों का अहसान याद है।
कहा, "अभी तक याद है।"
भाभी के भैया ने बात टाली, "इधर तो बहुत दिनों बाद दर्शन हुए।"
"आपकी अशर्फी रंग लाई।" बिहारी ने भाभी के भैया को देखकर कहा।
भाभी के भैया पी गए। बोले, "हमने तो तभी कह दिया था कि एक दिन तो जमाई राजा को बहुत बड़ा आदमी बनना है। बोलो काका कहा! था न?"
बिहारी ने चोट की, "क्यों नहीं। पर काका ने हमसे नहीं कहा। भला क्यों कर कहते? इनकी राय में हम कागज बिगाड़ा करते थे।
“यह मैंने कब कहा?"
"अब यहीं रहेंगे?" भाभी के भैया ने पूछा।
"बात यह है कि शाहज़ादा साहब समझते हैं कि बिहारी कागज नहीं बिगाड़ता।"
भाभी के भैया को इतने निष्ठुर व्यवहार की आशा नहीं थी। कुछ कह नहीं सके।
"तो फिर चलें।" काका ने कहा।
काका का मुख निष्प्रभ हो गया था।
"क्यों?" बिहारी ने कहा, "इतना भी धीरज नहीं? मैंने तो कई बरस बड़ी-बड़ी मीठी बातें सुनी थीं।"

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book