जीवन कथाएँ >> मेरी भव बाधा हरो मेरी भव बाधा हरोरांगेय राघव
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कवि बिहारीलाल के जीवन पर आधारित रोचक उपन्यास...
खबर आई कि खुर्रम ने दिल्ली की ओर पांव उठाए, किन्तु सल्तनत के पुराने सेवक
और अधिकारी नूरजहां के सहायक थे। खुर्रम को सफलता नहीं मिली। वह दक्कन भाग
गया और उसने वहां के सुलतानों की सहायता प्राप्त करने का प्रयत्न किया।
किन्तु दकन का कोई भी सुलतान इतना साहसी नहीं था। खुर्रम को कोई सहायता नहीं
मिली तब वह वहां से भागकर उड़ीसा चला गया। फिर उसने अपनी साथ की सेना के बल
पर ही बंगाल और बिहार पर अधिकार कर या। अब वह इन स्थानों का शासक बन बैठ।
किन्तु जहांगीरी फौजों ने यहां भी उसका पीछा नहीं छोड़ा। बराबर तंग करती रहीं
और परेशान होकर जब खुर्रम फिर दक्कन गया और तब उसने पिता से, सब तरह से
असमर्थ होकर, क्षमा मांगी। जहांगीर ने उसे माफ कर दिया।
तब नूरजहां ने परवेज के साथी महावत खां पर नजर फेरी और उसे पदच्युत कर दिया।
महावत खां ने साहस से काम लिया और झेलम के किनारे बादशाह जहांगीर को कैद कर
लिया, किन्तु नूरजहां अत्यन्त चतुर स्त्री थी। उसने पति को छुड़ा लिया और
महावत खां दक्षिण भागा। उन्हीं दिनों परवेज मर गया और महावत खां शाहजहां से
जा मिला।
साम्राज्य में सत्ता के लिए संघर्ष हो रहा था। जहांगीर की शराब बहुत बढ़ गई
थी। वह अपना काफी समय चित्रकार नादिर समरकन्दी के साथ बिताता। दरबार के
अमीरों में दलबन्दी हो रही थी और ईर्ष्या का बोलबाला था। दरबारों में अखण्ड
विलास होता-हिन्दू हो या मुसलमान, स्त्री का रूप बिखरा पड़ा था। ललित कलाएं
नारी के सौन्दर्य में सीमित हो चली थीं। मुगल खजाने से तनख्वाहें देने की
बजाए अब जागीरें देने की प्रथा बढ़ गई। खालसा भूमि की आय घट गई, खर्चा बढ़
गया और इसका बोझा टूटा किसानों पर।
अनेक प्रकार की यह उड़ती खबरें मथुरा आतीं तब तक वे काफी अतिरंजित भी हो
जातीं। किन्तु उसे मुगल दरबार से अब भी वृत्ति मिलती थी। अन्य राजा भी भेजते।
उसे लोग इतना महत्त्व नहीं देते थे कि राज्यकार्य में उसके पक्ष-विपक्ष पर भी
ध्यान देते।
बिहारी चिन्ता में पड़ गया था। किन्तु चन्द्रकला के साथ उसका समय व्यतीत होता
रहा। खाना प्रातःकाल चौके में चलता सुशीला के पास। शाम को पक्का खाना
चन्द्रकला के यहां खा लिया जाता।
गर्मियों में खस की टट्टियां पानी से तर रहती। जलकुण्डों में खस पड़ा रहता।
केवड़ा महका करता। कपूर से सुगन्धित पान चलते। मथुरा की गर्मी अपनी प्रचण्डता
में आगरे से कम नहीं होती। वनों में निदाध के दाह से अहि, मयूर, मृग, बाघ एक
साथ बैठे हांफते और वन तपोवन-सा हो जाता। बिहारी, ऋतुसंहार, अमरुकशतक इत्यादि
का रस लेता। चन्द्रकला तम्बूरे पर गाती।
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