जीवन कथाएँ >> मेरी भव बाधा हरो मेरी भव बाधा हरोरांगेय राघव
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कवि बिहारीलाल के जीवन पर आधारित रोचक उपन्यास...
पांच
अंधेरा हो चला था। चारों ओर नीरवता छा रही थी।
“अब कितनी दूर है?"
"बस आ पहुंचे।"
"वहीं है?"
“और आगे है।"
"वह आमेर के दीपक ही तो हैं।"
"हां, वही हैं।"
गढ़ के बाहर फाटक पर वे सब रुक गए।
"खोलो भाई।"
'रात के मेहमान हैं।"
"कौन है? कौन है।" कोई कोट पर से चिल्लाया।
"यहां का नायक कौन है?"
"तुम क्यों पूछते हो?"
"हम भीतर जाना चाहते हैं। हमारे मालिक जोधपुर से आ रहे हैं आमेर में उन्हें महाराज जानते हैं। कविराइ बिहारी लाल है।"
द्वार खुल गया।
कोतवाल आगे बढ़ आया।
"कहां हैं कविराइ?"
बिहारी का रथ बढ़ा।
“ओ हो, पालागन," कोतवाल ने कहा।
"बड़ा कष्ट हुआ आज।"
“वाह महाराज! हमारा और काम ही क्या है।"
"आ जाओ सब भीतर!"
“अब द्वार बन्द कर दो।"
वे सब भीतर घुस आए।
बिहारी के आने का संवाद दूसरे ही दिन नगर में फैल गया। पहाड़ी पर बसा था आमेर। हवेलियों के ऊपर कनाटेदार छतरियां थीं।
ठाकुर जोराबरसिंह जू मिले। वे रानी के मामा थे। करौली के सरदार सांवलदास के साले थे। उनकी भांजी इस समय महारानी थी। किन्तु समय अपनी पीठ दिखा रहा था। अनन्तकुंवरि चौहानी से राजा जयसिंह ने मुंह फेर लिया था।
महाराज जयसिंह ने एक नया विवाह किया था। नवोढ़ा के प्रेम ने उन्हें बांध लिया था। न वे राज्य देख पाते थे, न किसी और को। रात-दिन उसी रानी के पास पड़े रहते। राज्य में इस घटना से काफी विक्षोभ पाया जा रहा था। प्रबंध बिगड़े हुए थे। उन्होंने सारी घटना सुनाई।
“ऐं?" बिहारी ने कहा, “कब से यह हाल है?"
"महीने हो चले।"
"राजमंत्री उनसे मिले?"
"गए थे किन्तु महाराज मिले नहीं।"
"हां!!' बिहारी ने आश्चर्य से कहा, “ऐसा कैसे हो सकता है। राजपुरोहित को नहीं भेजा?"
"क्यों नहीं भेजा। राज्य के सबसे वृद्ध विद्वान हैं पंडित रामवल्लभ, उन्हीं को भेजा था।"
"फिर?"
"फिर क्या कविराइ।"
"तो भी तो।"
"बोले महाराज, इस समय नहीं मिल सकते।"
"कहते हैं, पृथ्वीराज चौहान की भी यही दशा हुई थी।"
"सब भगवान जानें, किन्तु तब चन्द वरदाई थे, जिन्होंने पृथ्वीराज को पंगानी की मोह-निद्रा से जगा दिया था। आज के कवि वृत्ति लेते हैं परन्तु उनकी सरस्वती में वह चुभन नहीं रही। पहले राजा कवि और वारहट रखते थे। क्यों? ताकि कोई निडर होकर उनके अपराधों को बता सके, आज के कवि डरते हैं।"
बिहारी को आश्चर्य हुआ।
उसको बुरा भी लगा। उसने कहा, "बड़ों की बुराई कौन कह सकता है? विधाता ने गुलाब की डाली को कांटों से भर दिया है।"
जोराबरसिंह दबे नहीं। बोले, "बस यही तो बात है। लेकिन विधाता ने जिन्हें वाणी दी है, यदि वही न बोले तो...?"
“आमेर राज्य में क्या कवि नहीं, जो महाराज की भूल दिखा सकते?"
"इतनी ही बात हो जाती तो यह हालत होती ही क्यों? इसी का तो अभाव है।" उन्होंने फिर कहा, "लेकिन खबर अगर आगरा पहुंची तो कैसी होगी?"
"क्यों?"
"दिल्ली और आगरा यह सुनें तो आमेर का क्या होगा? बादशाह नाराज नहीं होंगे?"
जोराबरसिंह ने एक बार गूढ़ दृष्टि से देखा और कहा, “यह सब तभी तक है, जब तक महाराज के कानों तक बात नहीं पहुंचती कि मुगल बादशाह सचेत है। चकत्ता का घराना चकत्ता का घराना है।"
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