जीवन कथाएँ >> मेरी भव बाधा हरो मेरी भव बाधा हरोरांगेय राघव
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कवि बिहारीलाल के जीवन पर आधारित रोचक उपन्यास...
वे चुप हो गए। बिहारी सोच में पड़ गया।
फिर वह चले गए।
बिहारी जिन आशाओं को लेकर आया था, वे अब पूर्ण होती नहीं दिखाई देती थीं।
उसने सोचा क्या था, और हो क्या रहा था।
वह सो गया।
वह जागा तब भी मन भारी हो रहा था। उठकर उसने मुंह-हाथ धोने को नौकर पुकारा।
धीरे-धीरे पहाड़ियों के पीछे जाकर सूरज ढल गया और शांत सुशीतल संध्या हो गई।
द्वार पर फिर ठाकुर जोराबर दिखाई दिए। राजसी वेश में थे। तलवार बगल में लटक
रही थी। ऐंडदार जूतियां पहने थे और मूंछे ऊपर तनी हुई थीं। बिहारी स्वागत को
उठ खड़ा हुआ।
“आइए।"
वे आकर बैठे।
"कैसे फिर कष्ट किया?" बिहारी ने विनीत स्वर में पूछा।
वे कुछ क्षण ठिठके।
“मुझे महारानी ने भेजा है," उन्होंने धीरे-धीरे कहा। ।
"आज्ञा।"
जोराबरसिंह ने कहा, “आमेर की गद्दी का सवाल है।"
"और करौली क्या कहती है?''
"वह धर्म की ओर है।"
"राजा की मनमौज है। कब नहीं सुना कि राजा नई-नई रानियां रखते हैं!
आपके महल में कितनी स्त्रियां हैं?"
वे चुप रहे।
“आप बताते डरते हैं?"
"मेरे पास डेढ़ सौ हैं।'
“आप यह जानते हैं, आमेर राज्य बहुत बड़ा है आपसे। यहां हजारों हैं।
फिर यदि वह आपकी भांजी है, तो क्या, राजा पुरुष है और स्त्री पर उसका अधिकार
है।"
"मैं अपनी भांजी के लिए नहीं कहता, राज्य के लिए कहता हूं। ऐसे राजा को उसके
रिश्तेदार ही मार सकते हैं। राज्य क्या होता है जानते हैं?"
बिहारी सुनता रहा। वे कहते रहे, “यह कलियुग है। राम और भरत का युग नहीं।
खुर्रम और शहरयार का समय है। इसी से महारानी ने आपको याद किया है।"
"मैं परदेसी हूं। मैं इसमें क्या कर सकता हूं?"
"वह महारानी जानें।"
"उन्होंने कुछ कहा होगा।"
“जो उन्होंने कहलाया है वह आपको बताए देता हूं।"
"सुनाइए।"
"कहा है-बिहारीलाल सच्चे कविराइ हैं। खुशामदी नहीं। वे अवश्य अपने वृत्तिदाता
का भला सोचेंगे। अब मैं तो कह चुका। आगे आप ही सोच लें। आप कल पधारें। स्वयं
बातें कर लें। पालकी आ जाएगी।"
वे खड़े हो गए।
बिहारी असमंजस में पड़ गया।
'मैं आऊंगा। मैं हाजिर हो जाऊंगा।"
वे चले गए।
बिहारी सोच में पड़ गया। अब उसे जाना पड़ेगा। उसने कह दिया है।
क्या राजा बाद में यह जानकर बुरा मानेंगे?
'मैं हाजिर होऊंगा!' क्यों कहा उसने? राजा है तो सौ रानियां हैं। उपेक्षित
रानी की तरफ से बोलना पूरी मुसीबत ठहरी। यह उसने अपने-आप क्या आफत मोल ले ली।
किन्तु तीर हाथ से निकल चुका था।
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