जीवन कथाएँ >> मेरी भव बाधा हरो मेरी भव बाधा हरोरांगेय राघव
|
147 पाठक हैं |
कवि बिहारीलाल के जीवन पर आधारित रोचक उपन्यास...
उजबेकों को दवाना मुगलों के लिए आवश्यक है। वे बड़े बर्बर हैं। वे हिंद पर भी
हमला कर सकते हैं।
मुगल अच्छे हैं, जाने-पहचाने। सहिष्णु हैं। धर्म-विरोधी नहीं ।
उजबेकों को रोकना आवश्यक है।
यों अनेक प्रकार के विवाद होते और मंदिरों में वैष्णव और शैव-सभी राज्याश्रित
महाराज जयसिंह की मंगल-कामना किया करते।
कुछ ही दिन में समाचार आया कि महाराज जीत गए हैं।
महारानी ने कवि को भेंट भेजी।
नगर में, राज्य में उत्साह छा गया।
महाराज पहले दिल्ली गए, फिर आगरे । वहां उनका शाहंशाह ने स्वागत-सत्कार किया।
यह खबर जब आई तो घर-घर में कोलाहल मच उठा। मुगल तख्त का सबसे बड़ा पाया उस
समय यही जयपुर राज्य था।
आमेर सजाया जाने लगा। महाराज शीशमहल में पधारे। बिहारी ने आशीर्वाद दिया।
दूसरे दिन दरबार लगा।
जय-जयकारों में आकाश फटने लगा। चारों ओर से महावीर योद्धाओं और उनके नेता को
आदरपूर्वक देखकर लोग हर्ष मना रहे थे।
बिहारी आगे आया।
वृद्ध राजपुरोहित ने कुंचित दृष्टि से देखा। राज्य के वयोवृद्ध सरदार खड़े
रहे।
बिहारी ने दोनों हाथ उठाकर महाराज को संस्कृत में आशीर्वाद दिया। चारों ओर
नीरवता छा गई।
बिहारी ने सुनाया :
बाहुबली जयसाहि जू, फते तिहारै हाथ।।
घर घर तुरुकिनि, हिंदुनी, देति असीस सराहि।
पातिनु रखि चादर चुरी, तें राखी जयसाहि।।
यों दल काटे बलक तें, तें जयसिंह भुवाल।
उदर अधासुर कैं परें, ज्यों हरि गाई, गुवाल ।।
चलत पाइ निगुनी गुनी, धनु मनि-मत्तिय-माल ।
भेंट होत जयसाहि सौं, भागु चाहियतु भाल।।
अनी बड़ी उमड़ी लखै, असि बाहक, भट भूप।
मंगलु करि मान्यौ हियें, भौं मुँह मंगलु रूप।।
रहित न रन, जयसाहि-मुख, लखि लाखन की फौज।
जांचि निराखरऊ चलै, लै लाखनु की मौज।।
प्रतिबिंबित जयसाहि दुति, दीपति दरपन धाम।
सबु जगजीतन कौं कर्यो काम-ब्यूह मनु काम।।"
विलास की सामग्री, सेना, बुद्धिमान व्यक्ति आदि तो सभी शाहजहां के साथ हैं, किन्तु उनकी विजय केवल बाहुबली मिर्जा जयशाह के ही हाथों है।
प्रत्येक घर की तुर्क और हिन्दू सुहागिनें आशीर्वाद और प्रशंसा करती हुई कहती हैं, मिर्जा राजा जयसिंह ने हमारी सुहाग की चादर और चूड़ियों की रक्षा करके हमारे पतियों को बचाया है और हमें सुहाग दिया है।'
मिर्जा जयसिंह ने बलख के युद्ध में अपने सैनिकों की रक्षा भी की और विजय भी प्राप्त की। जैसे अघासुर के उदर से हरि ने गाय और गोपों को निकालकर जीवन-दान दिया था।
जयशाह का शौर्य है, कि शत्रु की विशाल वाहिनी को उमड़ता हुआ देखकर तलवार धारण करने वाले वीर सैनिकों एवं सम्राटों में युद्ध करना जयसिंह ने मंगल कार्य समझा और इसलिए वीरता और उत्साह के कारण उसका मुख मंगल नक्षत्र के समान लाल हो उठा।
लाखों की सेना भी जयसिंह को युद्ध भूमि में सामने देख नहीं टिक पाती और निरक्षर व्यक्ति भी याचना करने पर उनके द्वारा लाखों का पुरस्कार पाते हैं।
|