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जीवन कथाएँ >> मेरी भव बाधा हरो

मेरी भव बाधा हरो

रांगेय राघव

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1470
आईएसबीएन :9788170285243

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कवि बिहारीलाल के जीवन पर आधारित रोचक उपन्यास...


शीशमहल की दीवारों पर जयशाह का अनेक रूपी प्रतिबिंब पड़ता है तो लगता है कि मानो कामदेव ने संसार-भर की विजय करने को एक काम-व्यूह की रचना की हो।

प्रचण्ड जयघोष हुआ।
यो वर्ष बीत गए।
रामसिंह आगे आया।
अब वह सात वर्ष का हो चुका था! सुकुमार, सलोना और सुन्दर ।
कविराइ ने देखा तो मंगल-कुशल पूछा।

बालक मुस्कराया।
महाराज ने कहा, “कविराइ, यह तुम्हारा शिष्य है।"
बिहारी ने उसका पाटी-पूजन कराया और अक्षर-ज्ञान कराया। उस राजकुमार को शिक्षा देने के लिए दोहों का एक संस्करण कराया जिसमें 500 दोहे थे। इसमें अन्य कवियों की भी रचनाएं संकलित थीं। बालक कुंवर रामसिंह रेखाएं खींच देता और टेड़े-मेड़े अक्षर लिखता।
बिहारी को काम मिल गया।
बालक रामसिंह को पढ़ाना अच्छा लगा।
अपने पालित पुत्र को बिहारी ने अन्यों से पढ़वाया था। पर अब वह एक आदर्श राजा बनाने की कामना मन-ही-मन छिपाए हुए था। क्योंकि शाहजहां ने किसानों पर नए भार डाल दिए थे। बिहारी सुनता था। अकबर के जमाने में ऊपरी वसूली भले ही कुछ हो, लेकिन वैसे पैदावार का तिहाई भाग लिया जाता था। किन्तु शाहजहां ने उसे बढ़ाकर आधा कर दिया था। किसान और भी निर्धन हो गए। गांव छोड़-छोड़ कर वे भागने लगे। जमीन परती पड़ी रहती।

विलास की बाढ़ रुक गई। बिहारी देखता। विलास के लिए लोग भूखे मर रहे थे। प्राचीन हिन्दू राजा ऐसे कहां थे। जयपुर में ऐसा कहां था किन्तु कहीं कोई सुनवाई नहीं थी। बिहारी का मन विलास से ऊब चला था। आयु भी ढलान पर आ रही थी चन्द्रकला का यौवन भी बुझ चला था। बांके ने यह परिवर्तन देखा और प्रकारान्तर से सुशीला से जा कहा।
सुशीला नहीं समझी।
उधर आलमगीर सम्राट से कहता कि खेती कम होती है, कहता कि खेती कम होती है, जंगल बढ़ रहे हैं। दक्कन की हालत खराब है। सेना का व्यय बढ़ रहा है। पर शाहंशाह को फुर्सत थी। आलमगीर ने दक्कन का प्रबन्ध स्वयं अपने हाथों में ले लिया।

वह मराठों के प्रति सशंक था। मराठों में हिन्दूपन की पुकार आ रही थी। उत्तर में सिक्ख उठ रहे थे।
बिहारी को लग रहा था कि कहीं कुछ होने वाला था। शाहजहां को राज करते तीस वर्ष बीत चुके थे।
जो अनेक वर्ष बीत गए वे प्रजा में दरिद्रता का महाकाव्य लिख गए। अद्वितीय कौशल का प्रतीक आगरे का ताजमहल बन गया था।

सुशीला ने कहा, 'वह रोजा देखने चाहिए।"
बिहारी ने कहा, “तुम्हें इच्छा हुई।"
"नहीं, तुम्हारे लिए कहती हूं।"
"तुमने कभी कुछ नहीं मांगा।"
"मांगती तो तुम्हें अच्छा नहीं लगता। मुझे मांगना नहीं आता। क्या करूं!"
धीरे से सुशीला ने कहा, “जो तुम्हारा है सो मेरा है, फिर मांगू भी तो क्या?"

कितना स्नेह था। तब बिहारी ने स्वकीया के प्रेम के सम्बन्ध में चुभीले दोहे कहे। सुशीला प्रसन्न हो गई। उसका रूप उसके स्वामी की दृष्टि में आज भी वही था।
बिहारी ने कहा, "रोजा देख लेंगे। कहां जाता है।"
सम्वाद आया : शाहंशाह शाहजहां बीमार पड़ गए थे।
'चलोगे?" सुशीला ने कहा।
"अभी नहीं। अव्यवस्था में जाना खतरे से खाली नहीं होता।"
बांके बूढ़ा हो गया था। दर्पण में बिहारी ने देखा। उसकी भी कनपटियों के केश श्वेत हो गए थे। तो क्या वह वृद्ध हो चला था? उसने देखा, सचमुच सुशीला भी बुढ़ा गई थी। निरंजन कृष्ण युवक था। उसके विवाह की चिन्ता आ गई। सुशीला को यह विचार पसन्द आ गया। उसी वर्ष पुत्र का विवाह कर दिया।

बिहारी इस ओर से निश्चिंत हो गया। सुशीला को बहू मिल गई। बांके अब भक्त-सा हो गया था। वह न जाने क्या-क्या करता, मगन होकर। बिहारी को उसके पास निरंजन कृष्ण को देखकर नानिगराम की याद आ गई।

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