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जीवन कथाएँ >> मेरी भव बाधा हरो

मेरी भव बाधा हरो

रांगेय राघव

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1470
आईएसबीएन :9788170285243

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कवि बिहारीलाल के जीवन पर आधारित रोचक उपन्यास...


बिहारी अकेला रह गया। यह सब वह क्या देख रहा था। क्यों व्याकुल है उसका हृदय। क्या उसने पुत्र को गोद नहीं लिया। मन में कहा, "तेरा कब हुआ? तूने कब उस पर मन लुटाया? मां का सहारा है, मां जाने। उसने क्या किया?"
उसे लगा सब सूना-सूना था।
पुत्र!

बिना सुशीला के तो वह एक भी दिन जीवित नहीं रहा। अब क्या यह चली जाएगी? तब कैसा लगेगा बिहारी को! क्या वह रह सकेगा उसके बिना?
सुशीला ने उसको कभी जीवन में कष्ट नहीं होने दिया। किन्तु बिहारी! उसने अपने जीवन में किया क्या था सुशीला के लिए? कुछ नहीं। केवल अपने को  उसका पालनकर्ता समझता रहा। किन्तु कैसी थी यह स्त्री जो सब कुछ चुपचाप सहती रही। इतनी बड़ी ममता कहां मिलेगी बिहारी को! हे भगवान यह क्या हुआ! क्या हो रहा है यह सब!
बिहारी कातर हो गया।

किन्तु बिहारी का सोचा ठीक बैठा। जसवन्तसिंह और जयसिंह दोनों को ही इस हलचल में भाग लेना पड़ा। पिता का चुना पुत्र शासक था और उसकी आज्ञा इन्हें माननी ही पड़ी। वह चुना पुत्र शाहजहां का प्यारा बेटा दारा था।

तभी सम्वाद आया, शाहजहां कैदी था। उसने दारा को जो अपना उत्तराधिकारी चुना था, यही उसका फल मिला था उसको। शुजा और मुराद ने अपने-आप ताज पहन लिए। आलमगीर चालाक था। उसने शुजा और मुराद से मेल कर लिया और तीनों अपने प्रान्तों से सेनाएं लेकर राजधानी की ओर बढ़ चले। उज्जैन के पास दीपालपुर में आलमगीर और मुराद की सेनाएं मिल गईं। दारा ने जयसिंह को शुजा का सामना करने और जसवन्तसिंह को मुराद और आलमगीर को रोकने के लिए भेजा। जयसिंह ने शुजा को बनारस के पास हराया। किन्तु जसवन्तसिंह को कुछ अधिकारियों के धोखा दे जाने कारण भागना पड़ा। आलमगीर चम्बल पार के सामूगढ़ आ गया। दारा ने उसे रोका। परन्तु एक सेनापति आलमगीर से जा मिला। उसने छल किया। दारा को युद्ध का भी अभ्यास कम ही था।  दारा पूरी तरह हारकर दिल्ली भागा। आलमगीर आगरे में घुसा और उसने शाहजहां को कैद करके शासन अपने हाथ में ले लिया। उसने एक-एक करके सब भाइयों को मार डाला। और फिर एक दिन सारी शक्ति को अपने अधीन करके बादशाह औरंगजेब के नाम से आलमगीर मुगल सिंहासन पर आसीन हो गया। उसने राजाओं से फिर से नए सम्बन्ध स्थापित कर लिए। उसने जयपुर और जोधपुर-नरेशों को दण्ड नहीं दिया। उनसे मेल कर लिया। परन्तु मन में खटक रख ली। मुल्लाओं का जोर बढ़ गया।

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