जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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my experiment with truth का हिन्दी रूपान्तरण (अनुवादक - महाबीरप्रसाद पोद्दार)...
फिर भी मुझे कहना चाहिये कि कसरतमें न जाने से मुझे नुकसान नहीं हुआ। उसका कारण यह रहा कि मैंने पुस्तकों में खुली हवा में घुमने जाने की सलाह पढ़ी थी और वह मुझे रुची थी। इसकेकारण हाईस्कूल की उच्च कक्षा से ही मुझे हवाखोरी की आदत पड़ गयी थी। वह अन्त तक बनी रही। टहलना भी व्यायाम तो ही हैं ही, इससे मेरा शरीरअपेक्षाकृत सुगठित बना।
अरुचि का दूसरा कारण था, पिताजी की सेवा करने की तीव्र इच्छा। स्कूल की छुट्टी होते ही मैं सीधा घर पहुँचता औरसेवा में लग जाता। जब कसरत अनिवार्य हुई, तो इस सेवा में बाधा पड़ी। मैंने विनती की कि पिताजी की सेवा के लिए कसरत से छुट्टी दी जाय। गीमी साहबछुट्टी क्यो देने लगे? एक शनिवार के दिन सुबह का स्कूल था। शाम को चार बजे कसरत के लिए जाना था। मेरे पास घड़ी नहीं थी। बादलों से धोखा खा गया। जबपहुँचा तो सब जा चुके थे। दूसरे दिन गीमी साहब ने हाजिरी देखी, तो मैं गैर-हाजिर पाया गया। मुझसे कारण पूछा गया। मैंने सही-सही कारण बता दियाउन्होंने उसे सच नहीं माना और मुझ पर एक या दो आने (ठीक रकम का स्मरण नहीं हैं) का जुर्माना किया। मुझे बहुत दुःख हुआ। कैसे सिद्ध करुँ कि मैं झूठानहीं हूँ। मन मसोसकर रह गया। रोया। समझा कि सच बोलने वालो को गाफिल भी नहीं रहना चाहिये। अपनी पढ़ाई के समय में इस तरह की मेरी यह पहली और आखिरीगफलत थी। मुझे धुंधली सी याद हैं कि मैं आखिर यह जुर्माना माफ करा सका था।
मैंने कसरत से तो मुक्ति कर ही ली। पिताजी ने हेडमास्टर को पत्रलिखा कि स्कूल के बाद वे मेरी उपस्थिति का उपयोग अपनी सेवा के लिए करना चाहते हैं। इस कारण मुझे मुक्ति मिल गयी।
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