इतिहास और राजनीति >> ताजमहल मन्दिर भवन है ताजमहल मन्दिर भवन हैपुरुषोत्तम नागेश ओक
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पी एन ओक की शोघपूर्ण रचना जिसने इतिहास-जगत में तहलका मचा दिया...
ताज का स्थान, जो जयसिंहपुरा और खवासपुरा नाम से जाना जाता है, अनेक भवनों से घिरा हुआ है। ताज के चारों ओर बहुमंजिले भवन हैं जिनमें आरक्षी कर्मचारी, सेना की टुकड़ी, बैरे, खानसामे, रसोइए, परिचायक तथा अन्य कर्मचारी जो कि राजकीय घराने में होने आवश्यक हैं, निवास करते हैं। इसलिए उस क्षेत्र में बाजार, धर्मशाला, अतिथि-गृह और उन सबको जोड़नेवाली सड़कें थीं।
ताज के आयाम और उसकी सज्जा-सामग्री यह सब समृद्ध प्रासाद के अनुरूप हैं न कि किसी उदास मकबरे के अनुरूप। इसकी पुष्टि के लिए हम यहाँ मौलवी मोइनुद्दीन की पुस्तक के कुछ उद्धरण प्रस्तुत करते हैं : " भव्य प्रवेश-द्वार के सम्मुख विशाल २११-१/२ फुट लम्बा ८६-१/४ फुट चौड़ा चबूतरा है। चार दीवारों से घिरा हुआ आयताकार भूखण्ड उत्तर और दक्षिण में १,८६० फुट लम्बा एवं पूर्व और पश्चिम में १,००० फुट चौड़ा कुल क्षेत्रफल २,०७,००० वर्ग गज या ४२ एकड़ से कुछ अधिक है। प्रवेश-द्वार १०० फुट ऊँचा है।
"प्रवेश-द्वार साढ़े दस फुट चौड़ा है, द्वार आठ विभिन्न धातुओं के मिश्रण से बना हुआ है तथा इसमें पीतल की कीलें जड़ी हुई हैं। भीतरी क्षेत्र असंगत अष्टकोणीय है जिसका कर्ण साढ़े इकतालीस फुट है।"
यहाँ हम इस बात की ओर ध्यान दिलाना चाहते हैं कि अष्टकोणीय आकृति विशेषतया परम्परागत हिन्दू आकृति है। हिन्दू घरों में प्रवेश-द्वार के सम्मुख प्रायः पत्थर के चूर्ण से अष्टकोणीय मांगलिक चिह्न बनाया जाता है। प्राचीन युग में हाथ के पंखे भी अष्टकोणीय आकृति से हुआ करते थे। दीपावली उत्सव पर लटकाये जानेवाले कन्दील भी अष्टकोणीय होते हैं।
विशिष्ट धातु-सम्मिश्रण विद्या हिन्दू लौहकारों को ज्ञात थी और वे ही इसका निर्माण करते थे जैसा कि दिल्ली के प्रसिद्ध लौह-स्तम्भ, धार में रखा हुआ स्तम्भ आदि अनेक उदाहरणों से स्पष्ट है।
मकबरा तो फकीरों और निर्धनों के लिए २४ घंटे खुला रहता है। इसलिए इसमें नुकीली कीलों से जड़े द्वारों की आवश्यकता ही नहीं होती। केवल प्रासाद या दुर्ग के द्वार ही चमकीले पीतल की कीलों से जड़े हुए होते हैं, जिससे कि सम्भावित अनधिकार प्रवेश के समय मजबूती के कारण उनसे शत्रु का समावेश न हो सके।
मौलवी आगे कहता है:
"दूसरी मंजिल तक जाने के लिए १७ सीढ़ियाँ हैं। १७ सीढ़ियाँ और चढ़ने पर हम तीसरी मंजिल पर, जिसमें चार निवास-गृह हैं, पहुंचते हैं। चारों निवास- गृहों के आगे गलियारा होने से ये परस्पर सम्बद्ध हो जाते हैं। इस मंजिल के कोनों पर चार द्वार तथा एक ओर ऊपर जानेवाली सीढ़ीवाले अष्टकोणीय कक्ष हैं। चार सीढ़ियों में से दो नीचे पहली मंजिल पर जाती हैं और दो को बीच में ही बन्द कर दिया गया है।
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