इतिहास और राजनीति >> ताजमहल मन्दिर भवन है ताजमहल मन्दिर भवन हैपुरुषोत्तम नागेश ओक
|
0 |
पी एन ओक की शोघपूर्ण रचना जिसने इतिहास-जगत में तहलका मचा दिया...
"अगले दिन शुक्रवार होने से, मैं पवित्र कब्र पर जिसे बादशाह सलामत की उपस्थिति में बनाया गया था, श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए गया। वे (अर्थात् मकबरा, कब्र आदि) ठीक-ठाक हैं किन्तु कब्र के ऊपर के गुम्बद का उत्तरी भाग वर्षा ऋतु में दो-तीन स्थान पर टपकता है, इसी प्रकार दूसरी मंजिल पर बने अनेक राजकीय कक्ष, चार छोटे गुम्बद और चार उत्तरी भाग तथा गुप्त कक्ष एवं सतमंजिली छतें तथा बड़े गुम्बद को इस बरसात में अनेक स्थानों पर पानी लग गया है। उन सबकी मैंने अस्थायी तौर पर मरम्मत करवा दी है।
'किन्तु मैं सोचता हूँ कि अनेक मकबरों, मस्जिदों, सामुदायिक कमरों आदि की आनेवाली वर्षा ऋतु में क्या दशा होगी। उन सबकी विस्तार से मरम्मत की आवश्यकता है, मेरा विचार है कि दूसरी मंजिल की छत उखाड़कर उसे पुनः गारे- चूने, ईंट और पत्थरों से बनाने की आवश्यकता है। सभी छोटे-बड़े गुम्बदों की मरम्मत हो जाने से यह भव्य भवन गलने से बचाया जा सकता है। ऐसी आशा की जाती है कि बादशाह सलामत इस विषय पर विचारकर आवश्यक कार्यवाही का निर्देश करेंगे।
महताब बाग में बाढ़ का पानी भरा होने के कारण वह उजाड़ लगता है। उसकी दर्शनीय सुन्दरता तभी वापस आएगी जब बाढ़ का पानी सूख या बह जाएगा।
भवन परिसर के पृष्ठभाग का सुरक्षित रहना बड़ा आश्चर्यकारक है। पिछली दीवार से नाले के दूर रहने से उसका बचाव हो गया है।
"शनिवार को भी उस स्थान पर गया और फिर मैं राजकुमार (दारा) के पास भी गया, बाद में वे भी मेरे पास आए। उसके बाद मैंने सबसे विदाई ली और रविवार को अपनी यात्रा (दक्षिण की सूबेदारी लेने के लिए) आरम्भ की। आज आठवीं तिथि को मैं धौलपुर के आस-पास हूँ।"
इस प्रकार औरंगजेब के लेख से यह स्पष्ट है कि १६५२ में ही ताजमहल ऐसा प्राचीन हो गया था कि उसकी अच्छी मरम्मत करने की आवश्यकता पड़ गई थी। अत: जो कुछ १६५२ में हुआ वह किसी नये भवन की निर्माण की सम्पन्नता नहीं अपितु जीर्ण भवन का पुनरुद्धार था। यदि ताजमहल वह भवन होता जिसका निर्माण कार्य १६५२ में पूर्ण हुआ था तो वह इतना उपेक्षित नहीं होता कि औरंगजेब जैसा एकाकी दर्शक आकर उसकी यह दशा देखकर उसकी मरम्मत के आदेश देता। वे कमियाँ उन सहस्रों श्रमिकों और सैकड़ों दरबारी निरीक्षकों की नजरों में आती जो ताजमहल के निर्माण कार्य में लगे हुए माने जाते हैं। और ऐसी गम्भीर खामियाँ उसके पूर्ण किये जानेवाले वर्ष में ही यदि दिखाई देने लगी तो ताज को बनानेवाले दक्ष शिल्पियों' की जो प्रशंसा के पुल बाँधे गए हैं वे नितान्त अयुक्त हो जाते। इसमें सन्देह नहीं कि ताज का निर्माण करनेवाले दक्ष शिल्पी थे किन्तु वे शाहजहाँ के समकालीन नहीं अपितु शताब्दियों पूर्व के हिन्दू शिल्पी थे। इसी प्रकार ताज का अस्तित्व किसी मुस्लिम स्मृति भवन के रूप में नहीं अपितु हिन्दू मन्दिर प्रासाद के रूप में प्रकट हुआ था।
|
- प्राक्कथन
- पूर्ववृत्त के पुनर्परीक्षण की आवश्यकता
- शाहजहाँ के बादशाहनामे को स्वीकारोक्ति
- टैवर्नियर का साक्ष्य
- औरंगजेब का पत्र तथा सद्य:सम्पन्न उत्खनन
- पीटर मुण्डी का साक्ष्य
- शाहजहाँ-सम्बन्धी गल्पों का ताजा उदाहरण
- एक अन्य भ्रान्त विवरण
- विश्व ज्ञान-कोश के उदाहरण
- बादशाहनामे का विवेचन
- ताजमहल की निर्माण-अवधि
- ताजमहल की लागत
- ताजमहल के आकार-प्रकार का निर्माता कौन?
- ताजमहल का निर्माण हिन्दू वास्तुशिल्प के अनुसार
- शाहजहाँ भावुकता-शून्य था
- शाहजहाँ का शासनकाल न स्वर्णिम न शान्तिमय
- बाबर ताजमहल में रहा था
- मध्ययुगीन मुस्लिम इतिहास का असत्य
- ताज की रानी
- प्राचीन हिन्दू ताजप्रासाद यथावत् विद्यमान
- ताजमहल के आयाम प्रासादिक हैं
- उत्कीर्ण शिला-लेख
- ताजमहल सम्भावित मन्दिर प्रासाद
- प्रख्यात मयूर-सिंहासन हिन्दू कलाकृति
- दन्तकथा की असंगतियाँ
- साक्ष्यों का संतुलन-पत्र
- आनुसंधानिक प्रक्रिया
- कुछ स्पष्टीकरण
- कुछ फोटोग्राफ