इतिहास और राजनीति >> ताजमहल मन्दिर भवन है ताजमहल मन्दिर भवन हैपुरुषोत्तम नागेश ओक
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पी एन ओक की शोघपूर्ण रचना जिसने इतिहास-जगत में तहलका मचा दिया...
अन्य एक बड़ा ही उल्लेखनीय बिन्दु जो औरंगजेब के पत्र से उभरता है, यह कि यदि ताज का निर्माण वास्तव में १६५२ में ही पूर्ण हुआ होता तो कम-से- कम उसका प्रमुख वास्तुकार वहीं किसी निकट के वृक्ष पर ही फांसी पर लटका दिया गया होता क्योंकि उसने मुगल कोप के करोड़ों रुपयों का अपव्यय कराया तथा मृत महारानी की स्मृति का अपमान किया ऐसा भवन बनाकर जो अपने पूर्ण (फर्जी) होने के वर्ष ही फट गया और टपकने लगा। औरंगजेब जिसे क्रूरता और निर्दयता का दूसरा नाम माना जाता है, बादशाह शाहजहाँ को लिखे गए अपने पत्र में उन शिल्पियों पर अवश्य कहर ढाता। विपरीत हम उसको मैना की भाँति कूकते और यह संकेत करते हुए पाते हैं कि उसे आवश्यक मरम्मत कराते हुए खेद का अनुभव हो रहा था। ताज की मौलिकता के सम्बन्ध में इतिहासकारों की जो अशुद्ध धारणा है कम-से-कम औरंगजेब के इस पत्र से उन्हें शुद्ध करने में सहायता मिलनी चाहिए।
अपने पत्र में औरंगजेब ताजमहल के उद्यान को महताब उद्यान अर्थात् चन्द्रोद्यान के नाम से लिखता है, इससे हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि उद्यान जो ताजमहल अर्थात् तेज-महा-आलय के चारों ओर था, का मूल संस्कृत नाम चन्द्र- उद्यान रहा हो। हम इस निष्कर्ष पर इस आधार पर पहुंचे हैं कि अपने अनुसन्धान की अवधि में हमने पाया कि मुस्लिम आक्रमणकारियों ने जिस स्थान अथवा व्यक्ति पर भी अधिकार किया उसके संस्कृत नाम को उन्होंने उसके समकक्ष परशियन नाम में परिवर्तित कर दिया। इस प्रकार ताज को चन्द्रमा की चन्द्रिका में देखने की परम्परा स्पष्टतया शाहजहाँ से पूर्व की हिन्दू परम्परा है।
औरंगजेब के पत्र में दूसरी ध्यान देने योग्य बात यह है कि जब वह देखता है कि उद्यान में बाढ़ का पानी भर गया है और यमुना नदी में भरपूर बाढ़ आई हुई थी फिर भी उसका नाला जो उद्यान के पृष्ठभाग में था, अपनी सामान्य स्थिति में बह रहा था। उसे बड़ा विचित्र आश्चर्य हुआ था। हमने अपनी आँखों से स्वयं देखा है कि भरपूर वर्षा ऋतु में जब चारों ओर पानी ही पानी दिखाई देता है यमुना फिर भी ताजमहल की दीवार से सौ फीट दूर ही बहती है।
यदि औरंगजेब के पिता शाहजहाँ ने ताजमहल की दीवार के पीछे गुप्त जलमार्ग बनवाया था तो औरंगजेब के लिए यह रहस्य की बात न होती क्योंकि दरबारी कारीगर, यदि कोई था तो, औरंगजेब को सरलता से वह रहस्य समझा सकता था। किन्तु औरंगजेब को जिस प्रकार आश्चर्य हुआ वैसा ही समस्त मुगल दरबार को भी हुआ था। वे सभी आश्चर्यचकित थे कि किस प्रकार ताज के निकट यमुना एक यंत्रचालित नाले की भाँति बह रही थी। यह रहस्य ताजमहल अर्थात् तेज-महा- आलय मन्दिर प्रासाद के हिन्दू निर्माताओं की दूरदृष्टि और तकनीकी कुशलता का प्रमाण था, जो यह भली भाँति जानते थे कि वे बहुत बड़ी नदी के किनारे पर निर्माण कार्य का भार ले रहे हैं। अत: उन्होंने यमुना के दोनों किनारों पर स्थान- स्थान पर इस प्रकार के कूप खुदवा दिए थे कि जिससे बाढ़ आने पर यमुना अपनी सामान्य गति से ही प्रवहमान हो। इससे भी अधिक यमुना का पानी केवल ताज के निकट ही नियन्त्रित नहीं किया गया था अपितु आगरा में ही लाल किला तथा अन्यान्य हिन्दू राजकीय भवन जो अब एतमाद-उद्दौला आदि के नाम पर मुस्लिम मकबरे बन गए हैं, होने के कारण इसे आगरा नगर के एक छोर से दूसरे छोर तक नियंत्रित कर दिया गया था।
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