लोगों की राय

इतिहास और राजनीति >> ताजमहल मन्दिर भवन है

ताजमहल मन्दिर भवन है

पुरुषोत्तम नागेश ओक

प्रकाशक : हिन्दी साहित्य सदन प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15322
आईएसबीएन :9788188388714

Like this Hindi book 0

पी एन ओक की शोघपूर्ण रचना जिसने इतिहास-जगत में तहलका मचा दिया...


ई. वी. हावेल के समान वास्तुशिल्प एवं इतिहास के प्रमुख विद्वान् यह घोषणा कर चुके हैं कि आकार-प्रकार में ताजमहल नितान्तरूपेण हिन्दू प्रासाद है। हमारी खोज ने प्रमाणित कर दिया है कि यह सर्वात्मना हिन्दू प्रासाद है और इसका निर्माण हिन्दुओं द्वारा मन्दिर प्रासाद परिसर के रूप में बादशाह शाहजहाँ से शताब्दियों पूर्व कर लिया गया है। ताजमहल जैसे भवन के निर्माण और इसके रख- रखाव का कार्य हिन्दू मस्तिष्क ही कर सकता है, इस बात की पुष्टि अभी हाल की एक घटना से भी हो चुकी है। श्री गुलाबराव जगदीश ने २७ मई, १९७३ के लोकप्रिय मराठी दैनिक 'लोकसत्ता' (बम्बई से प्रकाशित) में प्रकाशित अपने लेख में उस घटना का उल्लेख किया है।

उस लेख के लेखक श्री जगदीश के अनुसार १९३९ के प्रारम्भ में ताजमहल की देख-रेख के लिए नियुक्त ब्रिटिश इंजीनियर ने ताजमहल के गुम्बद में एक दरार देखी। उसने उस दरार की मरम्मत करनी चाही किन्तु असफल रहा। तब उसने अपने उच्च अधिकारियों का ध्यान उस ओर आकर्षित किया किन्तु वे भी असफल रहे। ज्यों-ज्यों दिन बीतते गए वह दरार चौड़ी और लम्बी होती गई। इंजीनियरों की एक समिति उसकी मरम्मत के लिए नियुक्त की गई किन्तु, उसको भी कोई सफलता नहीं मिली। जब तक कि दरार और बढ़कर गुम्बद गिर न जाय उससे पूर्व ही कार्य सम्पन्न होने की आवश्यकता अनुभव की गई।

अधिकारी किंकर्तव्यविमूढ़ थे कि एक देहाती-सा हिन्दू उनके पास गया। उसका नाम पूरनचन्द था। उसने अधिकारी इंजीनियर को बताया कि वह उस दरार को भरने की तकनीक जानता है और उसने इच्छा व्यक्त की कि उसको एक अवसर प्रदान किया जाय। क्योंकि तथाकथित आधुनिक और किताबी विशेषज्ञ इंजीनियर इस कार्य में असफल सिद्ध हो चुके थे, अतः ब्रिटिश इंजीनियर ने उस देहाती को बेमन से अपनी स्वीकृति प्रदान की। इसमें उसकी अपनी ही रुकावटें थीं। वह अन्तिम प्रयास करके देख लेना चाहता था।

कुछ राजगीरों को अपनी सहायता के लिए लगाकर पूरनचन्द ने कार्य आरम्भ किया। उसने एक किसी प्रकार का गारा-चूना बनाया और स्वयं अपने हाथों से दरार में भर दिया। गारा-चूना सूखने के बाद मूल गुम्बद से इस प्रकार जुड़ गया कि थोड़े दिन बाद वहाँ दरार का कोई नाम-निशान भी दिखाई नहीं दिया।

उस हिन्दू राजगीर का परिश्रम, जिसने सुशिक्षित ब्रिटिश इंजीनियरों को पराजित कर दिया था, भारत में ब्रिटिश नौकरशाही की चर्चा का विषय बनने के बाद तत्कालीन वाइसराय के कानों में पहुँच गया।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. प्राक्कथन
  2. पूर्ववृत्त के पुनर्परीक्षण की आवश्यकता
  3. शाहजहाँ के बादशाहनामे को स्वीकारोक्ति
  4. टैवर्नियर का साक्ष्य
  5. औरंगजेब का पत्र तथा सद्य:सम्पन्न उत्खनन
  6. पीटर मुण्डी का साक्ष्य
  7. शाहजहाँ-सम्बन्धी गल्पों का ताजा उदाहरण
  8. एक अन्य भ्रान्त विवरण
  9. विश्व ज्ञान-कोश के उदाहरण
  10. बादशाहनामे का विवेचन
  11. ताजमहल की निर्माण-अवधि
  12. ताजमहल की लागत
  13. ताजमहल के आकार-प्रकार का निर्माता कौन?
  14. ताजमहल का निर्माण हिन्दू वास्तुशिल्प के अनुसार
  15. शाहजहाँ भावुकता-शून्य था
  16. शाहजहाँ का शासनकाल न स्वर्णिम न शान्तिमय
  17. बाबर ताजमहल में रहा था
  18. मध्ययुगीन मुस्लिम इतिहास का असत्य
  19. ताज की रानी
  20. प्राचीन हिन्दू ताजप्रासाद यथावत् विद्यमान
  21. ताजमहल के आयाम प्रासादिक हैं
  22. उत्कीर्ण शिला-लेख
  23. ताजमहल सम्भावित मन्दिर प्रासाद
  24. प्रख्यात मयूर-सिंहासन हिन्दू कलाकृति
  25. दन्तकथा की असंगतियाँ
  26. साक्ष्यों का संतुलन-पत्र
  27. आनुसंधानिक प्रक्रिया
  28. कुछ स्पष्टीकरण
  29. कुछ फोटोग्राफ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book