इतिहास और राजनीति >> ताजमहल मन्दिर भवन है ताजमहल मन्दिर भवन हैपुरुषोत्तम नागेश ओक
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पी एन ओक की शोघपूर्ण रचना जिसने इतिहास-जगत में तहलका मचा दिया...
ई. वी. हावेल के समान वास्तुशिल्प एवं इतिहास के प्रमुख विद्वान् यह घोषणा कर चुके हैं कि आकार-प्रकार में ताजमहल नितान्तरूपेण हिन्दू प्रासाद है। हमारी खोज ने प्रमाणित कर दिया है कि यह सर्वात्मना हिन्दू प्रासाद है और इसका निर्माण हिन्दुओं द्वारा मन्दिर प्रासाद परिसर के रूप में बादशाह शाहजहाँ से शताब्दियों पूर्व कर लिया गया है। ताजमहल जैसे भवन के निर्माण और इसके रख- रखाव का कार्य हिन्दू मस्तिष्क ही कर सकता है, इस बात की पुष्टि अभी हाल की एक घटना से भी हो चुकी है। श्री गुलाबराव जगदीश ने २७ मई, १९७३ के लोकप्रिय मराठी दैनिक 'लोकसत्ता' (बम्बई से प्रकाशित) में प्रकाशित अपने लेख में उस घटना का उल्लेख किया है।
उस लेख के लेखक श्री जगदीश के अनुसार १९३९ के प्रारम्भ में ताजमहल की देख-रेख के लिए नियुक्त ब्रिटिश इंजीनियर ने ताजमहल के गुम्बद में एक दरार देखी। उसने उस दरार की मरम्मत करनी चाही किन्तु असफल रहा। तब उसने अपने उच्च अधिकारियों का ध्यान उस ओर आकर्षित किया किन्तु वे भी असफल रहे। ज्यों-ज्यों दिन बीतते गए वह दरार चौड़ी और लम्बी होती गई। इंजीनियरों की एक समिति उसकी मरम्मत के लिए नियुक्त की गई किन्तु, उसको भी कोई सफलता नहीं मिली। जब तक कि दरार और बढ़कर गुम्बद गिर न जाय उससे पूर्व ही कार्य सम्पन्न होने की आवश्यकता अनुभव की गई।
अधिकारी किंकर्तव्यविमूढ़ थे कि एक देहाती-सा हिन्दू उनके पास गया। उसका नाम पूरनचन्द था। उसने अधिकारी इंजीनियर को बताया कि वह उस दरार को भरने की तकनीक जानता है और उसने इच्छा व्यक्त की कि उसको एक अवसर प्रदान किया जाय। क्योंकि तथाकथित आधुनिक और किताबी विशेषज्ञ इंजीनियर इस कार्य में असफल सिद्ध हो चुके थे, अतः ब्रिटिश इंजीनियर ने उस देहाती को बेमन से अपनी स्वीकृति प्रदान की। इसमें उसकी अपनी ही रुकावटें थीं। वह अन्तिम प्रयास करके देख लेना चाहता था।
कुछ राजगीरों को अपनी सहायता के लिए लगाकर पूरनचन्द ने कार्य आरम्भ किया। उसने एक किसी प्रकार का गारा-चूना बनाया और स्वयं अपने हाथों से दरार में भर दिया। गारा-चूना सूखने के बाद मूल गुम्बद से इस प्रकार जुड़ गया कि थोड़े दिन बाद वहाँ दरार का कोई नाम-निशान भी दिखाई नहीं दिया।
उस हिन्दू राजगीर का परिश्रम, जिसने सुशिक्षित ब्रिटिश इंजीनियरों को पराजित कर दिया था, भारत में ब्रिटिश नौकरशाही की चर्चा का विषय बनने के बाद तत्कालीन वाइसराय के कानों में पहुँच गया।
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