इतिहास और राजनीति >> ताजमहल मन्दिर भवन है ताजमहल मन्दिर भवन हैपुरुषोत्तम नागेश ओक
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पी एन ओक की शोघपूर्ण रचना जिसने इतिहास-जगत में तहलका मचा दिया...
वाइसराय को बड़ा आश्चर्य हुआ कि सर्वथा अशिक्षित हिन्दू राजगीर ने उनके शिक्षित इंजीनियरों को पराजित कर दिया था। इससे उन विभागीय अधिकारियों के आत्मसम्मान को ठेस लगी जो अब तक सोच रहे थे कि पूरनचन्द को पुरातत्त्व- विभाग में रख-रखाव का अधीक्षक नियुक्त कर दिया जाए। वाइसराय की प्रशंसा ने इंजीनियरों में पूरनचन्द के प्रति ईर्ष्या भर दी। अब तो वे इस निश्चय पर अटल थे कि पूरनचन्द को उस विभाग से दूर कर दिया जाए। उसको किसी प्रकार की नौकरी नहीं दी गई। सितम्बर १९३९ में द्वितीय विश्व युद्ध प्रारम्भ हो गया और तब ताजमहल और उसके रख-रखाव की बात पृष्ठभूमि में विलीन हो गई।
१९४२ में डॉक्टर भीमराव अम्बेदकर को वाइसराय की कार्य-समिति का सदस्य बनाया गया और उन्हें श्रम-विभाग सौंपा गया। इस नियुक्ति से पूरनचन्द में आशा का संचार हुआ। टूटी-फूटी हिन्दी में पूरनचन्द ने अपनी कुंठा के विषय में डॉ. अम्बेदकर को एक पत्र लिखा। पत्र में उसने स्पष्ट लिखा कि उनके सम्मुख वेतन का प्रश्न उतना नहीं जितना कि राष्ट्रीय धरोहर को सुरक्षित रखना था जिससे कि भावी पीढ़ी उससे वंचित न हो जाए। इसी भावना से प्रेरित होकर ताजमहल के रख-रखाव के लिए उसने नौकरी के लिए प्रार्थना की थी।
पूरनचन्द की ईमानदारी से डॉ. अम्बेदकर प्रभावित हुए। उन्होंने तत्कालीन वाइसराय लार्ड लिनलिथगो से पूरनचन्द का परिचय करा दिया। डॉ. अम्बेदकर ने वाइसराय को यह सूचना देते हुए लिखा कि वे ऐतिहासिक भवन के रख-रखाव के लिए पूरनचन्द को सहायक इंजीनियर नियुक्त करना चाहते हैं। उसके साथ ही उसको राष्ट्रीय सम्मान प्रदान करने का भी परामर्श दिया। वाइसराय ने उसे स्वीकार कर पूरनचन्द को 'राय साहब' की उपाधि प्रदान कर दी।
यह सब रिकॉर्ड में अंकित है और उस लेख के लेखक गुलाबराव जगदीश की मान्यता की पुष्टि करता है।
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