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ताजमहल मन्दिर भवन है

पुरुषोत्तम नागेश ओक

प्रकाशक : हिन्दी साहित्य सदन प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15322
आईएसबीएन :9788188388714

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पी एन ओक की शोघपूर्ण रचना जिसने इतिहास-जगत में तहलका मचा दिया...


पहले तो हम यह ध्यान कर लें कि मुण्डी भारत में केवल १६३३ तक ही था। मुमताज़ का मृत्युकाल १६२९ और १६३२ के मध्य बताया जाता है। इसका अभिप्राय यह है कि मुण्डी भारत में मुमताज़ की मृत्यु के बाद एक-दो वर्ष ही रहा। इतने बड़े ताजमहल परिसर के लिए नींव खोदने का कार्य भी उस अवधि में बहुत कम समझा जाता है। नदी के इतने निकट होने के कारण जब तक कि पानी को भवन की ओर आने से रोकने के लिए सुदृढ़ गारे-चूने की दीवार और प्रवाह-नली जो कि पिछली दीवार और नदी-तट के मध्य बनाई जाए और भूमि भली प्रकार सूख न जाए तब तक ताजमहल (हिन्दू प्रासाद परिसर) के प्राचीन निर्माताओं द्वारा नींव भी खोदना सम्भव नहीं था।

और उन दो वर्षों के अल्प समय में भी मुण्डी लगभग, छ: सौ हजार रुपए का एक सोने का कठघरा जिसमें रत्न जड़े हुए थे, का उल्लेख करता है।

पाठक और अनुसन्धाता इस तथ्य पर विचार कर सकते हैं कि क्या हजारों साधारण श्रमिकों के मध्य जो कि धरती को खोदने, भरने में सारे वायुमण्डल को धूल-धक्कड़ से भर रहे हों इतनी अपार सम्पत्ति उस प्रकार खुले में रखी जा सकती है ? क्या इस प्रकार की मूल्यवान् एवं भव्य वस्तुएँ जो कि भवन पूर्ण होने के उपरान्त सजावट के लिए लगाई जाती हैं, नींव खोदने के समय लगाई जा सकती हैं? इस प्रकार की मूल्यवान् वस्तुएँ मुण्डी ने मुमताज़ की मृत्यु के एक-दो वर्ष बाद उसकी कब्र के चारों ओर देखीं, इससे यह सिद्ध होता है कि मुण्डी ने गुम्बद और ताज के भीतर उसी अवस्था में प्रवेश किया होगा जिस अवस्था में आज हम उसको देखते हैं। यह भी कि मुमताज की मृत्यु के एक-दो वर्ष बाद ही ऐसा विशाल भवन बन गया था, यह इस बात की ओर संकेत करता है कि शाहजहाँ ने प्राचीन हिन्दू मन्दिर प्रासाद का अधिग्रहण किया था जैसा कि उसके अपने दरबारी इतिहास-लेखक ने बादशाहनामे के प्रथम भाग के पृष्ठ ४०३ पर अंकित किया है। तब प्रश्न उठता है कि मुण्डी ने जिस भवन-निर्माण-कार्य का उल्लेख किया है, वह क्या है? इसके लिए भी मुण्डी विशुद्ध स्रोत प्रस्तुत करता है क्योंकि शाहजहाँ ने प्राचीन हिन्दू भवन परिसर को हथियाया है अत: उसको इस्लामिक मकबरा जैसा बनाना था। इस प्रकार की वास्तुशिल्प-सम्बन्धी धोखाधड़ी के लिए संस्कृत के शिलालेख एवं हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियाँ उखाड़कर उनके स्थान पर कुरान की आयतें खुदवाई गईं। औरंगजेब के पत्र से भी हमें यह विदित हुआ था कि परिसर के सारे भवन पुराने और टूटे-फूटे होने के कारण टपकते थे, उनकी मरम्मत भी करनी थी। संगमरमर भवन के तथा केन्द्रीय गुम्बद के पूर्वी तथा पश्चिमी छोर पर अरबी भाषा एवं लिपि का 'अल्लाह" शब्द भी अंकित करना था। इस सबके लिए भवन के चारों ओर ऊँचाई तक बहुत बड़े मचान की भी आवश्यकता थी। इसीलिए टैवर्नियर ने प्रसंगानुकूल ही लिखा है कि "समस्त कार्य की अपेक्षा मचान बंधवाने की लागत कहीं अधिक थी।"

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    अनुक्रम

  1. प्राक्कथन
  2. पूर्ववृत्त के पुनर्परीक्षण की आवश्यकता
  3. शाहजहाँ के बादशाहनामे को स्वीकारोक्ति
  4. टैवर्नियर का साक्ष्य
  5. औरंगजेब का पत्र तथा सद्य:सम्पन्न उत्खनन
  6. पीटर मुण्डी का साक्ष्य
  7. शाहजहाँ-सम्बन्धी गल्पों का ताजा उदाहरण
  8. एक अन्य भ्रान्त विवरण
  9. विश्व ज्ञान-कोश के उदाहरण
  10. बादशाहनामे का विवेचन
  11. ताजमहल की निर्माण-अवधि
  12. ताजमहल की लागत
  13. ताजमहल के आकार-प्रकार का निर्माता कौन?
  14. ताजमहल का निर्माण हिन्दू वास्तुशिल्प के अनुसार
  15. शाहजहाँ भावुकता-शून्य था
  16. शाहजहाँ का शासनकाल न स्वर्णिम न शान्तिमय
  17. बाबर ताजमहल में रहा था
  18. मध्ययुगीन मुस्लिम इतिहास का असत्य
  19. ताज की रानी
  20. प्राचीन हिन्दू ताजप्रासाद यथावत् विद्यमान
  21. ताजमहल के आयाम प्रासादिक हैं
  22. उत्कीर्ण शिला-लेख
  23. ताजमहल सम्भावित मन्दिर प्रासाद
  24. प्रख्यात मयूर-सिंहासन हिन्दू कलाकृति
  25. दन्तकथा की असंगतियाँ
  26. साक्ष्यों का संतुलन-पत्र
  27. आनुसंधानिक प्रक्रिया
  28. कुछ स्पष्टीकरण
  29. कुछ फोटोग्राफ

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