इतिहास और राजनीति >> ताजमहल मन्दिर भवन है ताजमहल मन्दिर भवन हैपुरुषोत्तम नागेश ओक
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पी एन ओक की शोघपूर्ण रचना जिसने इतिहास-जगत में तहलका मचा दिया...
स्वाभाविक ही जब पीटर मुण्डी जैसे उदासीन यात्री ऐसे स्थानों को देखें जहाँ कि व्यर्थ का परिवर्तन किया जा रहा हो तो उनका यह कहना कि "भवन शुरू हो गया है (और) उस पर असामान्य परिश्रम किया जा रहा है।" असंगत नहीं है। वह इस बात का अनुमान नहीं लगा सकता था कि उसके कुछ पीढ़ियों बाद भावी पीढ़ी को यह कहकर धोखे में रखा जाएगा कि ताजमहल का निर्माण शाहजहाँ ने स्वयं करवाया था। टैवर्नियर और मुण्डी सम्भवतया इतिहास-सम्बन्धी इस धोखे का अनुमान नहीं लगा सके और इसी कारण वे अधिक स्पष्टता से कुछ नहीं लिख पाए। हम स्वयं ही यदि भवन को यों ही देखने के लिए जाएँ तो हम भी उतना स्पष्ट नहीं हो सकते। उदाहरणार्थ, यदि हम बम्बई अथवा लन्दन उस समय जाएँ जब किसी व्यक्ति ने किसी अन्य व्यक्ति का भवन लिया हो और उसको अपनी इच्छानुसार सजाने के लिए भवन के चारों ओर उसने मचान बँधवाए हों, ऐसी स्थिति में न तो उससे यह पूछने का साहस ही हो सकता है और न आवश्यकता कि उसने उस भवन को किस प्रकार ग्रहण किया, कितने में लिया, किससे लिया, वह क्या-क्या परिवर्तन करना चाहता है और इस पर कितना व्यय करना चाहता है। हम तो सीधे ही उस भवन को उसका भवन ही कह देंगे। इस प्रकार की छानबीन तब और भी असम्भव हो जाती है जब भाषा, जाति, संस्कृति, अधिकार और सम्पदा का बहुत बड़ा भेद दोनों को विभक्त करता हो।
सर्वप्रथम यह ध्यान में रखने की बात है कि पीटर मुण्डी, टैवर्नियर अथवा इस प्रकार के अन्य भी पाश्चात्य आगन्तुक जो प्राचीन या मध्यकालीन भारत में आए, वे अनुसन्धानकर्ता नहीं थे। वे तो आपाधापी में आनेवाले यात्री थे। वे तो निर्धन यात्री थे जो मुगल बादशाहों और दरबारियों से विस्तारपूर्वक, समानता के आधार पर वार्तालाप कर ही नहीं सकते थे। ऐसे यात्री तो अपने निवास, भ्रमण, राजकीय स्थलों को देखने, जो सूचना वे चाहते थे उसे प्राप्त करने के लिए और परसियन भाषा में जो सूचना और विवरण उन्हें प्राप्त हुआ है उसके स्पष्टीकरण आदि-आदि के लिए पूर्णतया निर्दयी मुगल दरबारियों की कृपा पर निर्भर थे।
इन परिस्थितियों में यह आधुनिक अनुसन्धानकर्ताओं के लिए है कि प्राचीन अथवा मध्यकालीन भारत में आनेवाले सामान्य यात्रियों के विवरण पर वे अपनी अनुसन्धात्री बुद्धि का प्रयोग कर उसका उचित निराकरण करें। आधुनिक अनुसन्धाताओं ने अपने इस प्राथमिक कर्तव्य के साथ भी धोखा किया है। बड़े मूर्ख-से सिद्ध होते हुए, उन विदेशी यात्रियों के समय और परिस्थिति को ध्यान में रखे बिना कि जिनमें उन्होंने वह सब लिखा है, आधुनिक अनुसन्धाताओं ने विवादास्पद अनुमानों का आश्रय लिया। उदाहरणार्थ, पीटर मुण्डी के विषय में मुख्य बात यह है कि मुमताज की मृत्यु के बाद कुछ ही वर्ष के लिए भारत में था, इस अल्प समय की अवधि में वह मकबरे के चारों ओर बहुमूल्य कठघरे की बात करता है।
पीटर मुण्डी का दूसरा मुख्य कथन शाहजहाँ द्वारा ताज के इर्द-गिर्द की छोटी-छोटी पहाड़ियों को समतल कराना है। शाहजहाँ द्वारा उन पहाड़ियों को समतल कराने के बाद भी ताज को देखने जाने वाले देखेंगे कि ताज के पास पहुंचने पर अभी भी उनके सड़क के दोनों ओर छोटी-छोटी पहाड़ियाँ दिखाई देती हैं। वे सब नकली पहाड़ियाँ हैं और प्राचीन हिन्दुओं द्वारा मन्दिर प्रासाद की नींव की खुदाई से निकले मलबे पत्थर के वहीं पड़े रहने से बन गई हैं। यह सामान्य बात थी। उदाहरणार्थ, भरतपुर नगर के चारों ओर खाई बनी हुई है और उस खाई खोदने से जो मलबा निकला वह भीतरी भाग में एकत्रित होकर अवरोधक के रूप में खड़ा सुरक्षा का साधन बन गया है। वही बात हिन्दू मन्दिर प्रासाद ताज की भी है। ताज की नींव खोदने से निकले मलबे को उसके चारों ओर डालने से बनी पहाड़ियों के तीन प्रयोजन हो सकते हैं। एक तो यह कि वही निकटस्थ मलबा फेंकने का स्थान हो सकता था, दूसरे पहाड़ीनुमा छोटा-सा उधान शोभादायक होता है, तीसरे पहाड़ी के अवरोधक रूप से खड़े रहने से शत्रु सीधा ताज पर आक्रमण नहीं कर सकता था।
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- प्राक्कथन
- पूर्ववृत्त के पुनर्परीक्षण की आवश्यकता
- शाहजहाँ के बादशाहनामे को स्वीकारोक्ति
- टैवर्नियर का साक्ष्य
- औरंगजेब का पत्र तथा सद्य:सम्पन्न उत्खनन
- पीटर मुण्डी का साक्ष्य
- शाहजहाँ-सम्बन्धी गल्पों का ताजा उदाहरण
- एक अन्य भ्रान्त विवरण
- विश्व ज्ञान-कोश के उदाहरण
- बादशाहनामे का विवेचन
- ताजमहल की निर्माण-अवधि
- ताजमहल की लागत
- ताजमहल के आकार-प्रकार का निर्माता कौन?
- ताजमहल का निर्माण हिन्दू वास्तुशिल्प के अनुसार
- शाहजहाँ भावुकता-शून्य था
- शाहजहाँ का शासनकाल न स्वर्णिम न शान्तिमय
- बाबर ताजमहल में रहा था
- मध्ययुगीन मुस्लिम इतिहास का असत्य
- ताज की रानी
- प्राचीन हिन्दू ताजप्रासाद यथावत् विद्यमान
- ताजमहल के आयाम प्रासादिक हैं
- उत्कीर्ण शिला-लेख
- ताजमहल सम्भावित मन्दिर प्रासाद
- प्रख्यात मयूर-सिंहासन हिन्दू कलाकृति
- दन्तकथा की असंगतियाँ
- साक्ष्यों का संतुलन-पत्र
- आनुसंधानिक प्रक्रिया
- कुछ स्पष्टीकरण
- कुछ फोटोग्राफ