इतिहास और राजनीति >> ताजमहल मन्दिर भवन है ताजमहल मन्दिर भवन हैपुरुषोत्तम नागेश ओक
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पी एन ओक की शोघपूर्ण रचना जिसने इतिहास-जगत में तहलका मचा दिया...
हम इससे आगे भी संकेत करना चाहते हैं कि महाराष्ट्रीय ज्ञान-कोश (एन्साइक्लोपीडिया) जिसे हम परवर्ती अध्याय में उद्धृत करेंगे, वास्तुकारों की परिषद् का उल्लेख नहीं करता, किन्तु कहता है कि विभिन्न वास्तुकारों को अनेक योजनाओं के लिए आदेश दिया गया था और उनमें एक को चुन लिया गया।
दूसरा तथ्य बादशाह शाहजहाँ के दरबारी इतिहासकार का जो उद्धरण पूर्ववर्ती अध्यायों में उद्धृत किया गया है, उसमें नक्शे और वास्तुकार का उल्लेख नहीं है। वह सही है, और एन्साइक्लोपीडिया का विवरण गलत है, क्योंकि जैसाकि उसने कहा, "मुमताज़ को पूर्व निर्मित प्रासाद में दफनाया गया।" यदि वास्तव में कोई योजना बनाई गई होती तो शाहजहाँ के दरबारी कागजों में उसका उल्लेख तो पाया जाता, किन्तु वहाँ ऐसा कोई उल्लेख नहीं पाया गया। एन्साइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका में ४ करोड़ का उल्लेख है किन्तु यह राशि शाहजहाँ के अपने दरबारी इतिहास- लेखक मुल्ला अब्दुल हमीद लाहोरी द्वारा बताई गई, जिसका हम पहले उल्लेख कर चुके हैं, ४० लाख की लागत से दस गुणा अधिक है। पाठक इसे एक उदाहरण के रूप में ध्यान में रखें कि ताजमहल की लागत विभिन्न विवरणों में किस प्रकार बढ़ा- चढ़ाकर लिखी गई है।
एन्साइक्लोपीडिया का यह प्रसंग 'अश्वशाला, बाहा कक्ष तथा आरक्षक-कक्ष' जैसे सहायक कक्ष उल्लेखनीय हैं। ऐसे कक्षों की मृतक को कभी आवश्यकता नहीं होती, विपरीत इसके हिन्दू प्रासाद अथवा मन्दिर में इनकी सदा आवश्यकता रहती है।
एन्साइक्लोपीडिया में उल्लिखित अष्टभुजी दालान हिन्दू राजकीय परम्परा है जो रामायण से ली गई है। हिन्दू राज्य का राम आदर्श है, जैसा कि वाल्मीकि की रामायण में उल्लेख है। उनकी राजधानी अयोध्या अष्टकोण वाली थी। हिन्दू, संस्कृत परम्परा में ही केवल आठों दिशाओं के नाम-विशेष उपलब्ध हैं। सभी आठों दिशाओं के संरक्षक पृथक्-पृथक् देवता हैं, किसी भी हिन्दू राजा से दर्शों दिशाओं में अपना प्रताप स्थिर करने की अपेक्षा की जाती थी। इन दशों दिशाओं में स्वर-लोक और धु-लोक भी सम्मिलित हैं। किसी भी भवन की अटारी आकाश की ओर तथा नींव पाताल की ओर संकेत करती है। इस प्रकार अटारी और नींव सहित कोई भी अष्टकोणीय भवन राजा अथवा ईश्वर के दशों दिशाओं में प्रताप का प्रतीक है। इसीलिए सभी रूढ़िवादी हिन्दू भवन अष्टकोणीय ही बनाए जाते हैं। इस ताजमहल का अष्टकोणीय आकार और इसके दालान तथा बुर्जियाँ इसका हिन्दू नमूना होना सिद्ध करते हैं। मुसलमानी परम्परा में अष्टकोण का कोई महत्त्व नहीं है।
एन्साइक्लोपीडिया का ताजमहल के चारों ओर संगमरमर के चार स्तम्भों को 'मीनार' बताना गलत है। मुस्लिम मीनारें तो सदा ही भवन का अंग होती हैं। ये स्तम्भ जो संगमरमर के मुख्य भवन से अलग किए गए हैं, ये हिन्दू स्तम्भ अथवा अटारी हैं, उन्हें मीनार नहीं कहा जा सकता। हिन्दू परम्परा के अनुसार प्रत्येक पवित्र पीठ निश्चितरूपेण कोनोंवाली होनी चाहिए अन्यथा उसके समाधि होने का भ्रम हो जाएगा।
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