इतिहास और राजनीति >> ताजमहल मन्दिर भवन है ताजमहल मन्दिर भवन हैपुरुषोत्तम नागेश ओक
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पी एन ओक की शोघपूर्ण रचना जिसने इतिहास-जगत में तहलका मचा दिया...
शाहजहाँ-सम्बन्धी गल्पों का ताजा उदाहरण
ताजमहल के सम्बन्ध में किस प्रकार लेखकों ने 'अपनी ढपली अपना राग अलापा' और आज भी वह प्रवृत्ति प्रचलित है, इसका एक उल्लेखनीय उदाहरण 'इलस्ट्रेटेड वीकली ऑफ इंडिया'* ने प्रस्तुत किया है।
* दि इलस्ट्रेटेड वीकली ऑफ इंडिया, बम्बई, दि. ४-४-१९६५ के अंक में 'ताजमहल के निर्माता-प्राचीन रहस्य उद्घाटित', शीर्षक से मुहम्मद खाँ का एक लेख प्रकाशित हुआ।
प्रथमतः हम पूर्ण लेख प्रस्तुत करेंगे, तद नन्तर उस पर अपनी टिप्पणी। लेख जिसकी टाइप की हुई प्रतिलिपि हमें एक मित्र से प्राप्त हुई थी, वह इस प्रकार है:
"ताजमहल के निर्माता"
प्राचीन रहस्य उद्घाटित
'सारे संसार के लोग ताज देखने के लिए आगरा आते हैं और वे सभी उन वास्तुकारों की कुशलता और बुद्धिचातुर्य पर आश्चर्य व्यक्त करते हैं जो सुन्दर 'संगमरमर में स्वप्न' की सिद्धि अभियोजित करने में समर्थ हो सके थे। मुगल बादशाह शाहजहाँ ने उन्हें अपनी पत्नी मुमताज़ के प्रति अपने प्रेम का उपयुक्त प्रतीक रूप में स्मृतिस्वरूप एक ऐसा मकबरा बनाने के लिए नियुक्त किया था कि जो संसार का आश्चर्य हो और उन्होंने संसार के इस आश्चर्य का निर्माण किया।
"तदपि, उनकी खोज-परिश्रमपूर्ण प्रयासों के अनन्तर उनका परिचय अभी तक रहस्य ही बना हुआ है, विचित्र अनुमान लगाए गए जैसेकि वे विदेशी मूल के हों। यहाँ तक कि बनियर (१६४२) ने भी एक जनश्रुति का उल्लेख करते हुए यह लिखा है कि वास्तुकार की इसलिए हत्या करवा दी गई कि जिससे उसकी कला का रहस्य उद्घाटित न हो जाए और ताज का प्रतिस्पर्धी न बनाया जा सके।
"किन्तु अन्तत: बंगलौर-निवासी मियाँ महमूद खाँ के पुस्तकालय में प्राप्त एक पुस्तक की पाण्डुलिपि से उस रहस्य का उद्घाटन हो ही गया। ताजमहल के निर्माण का गौरव निश्चितरूपेण भारत को ही प्राप्त है। उसका निर्माण लाहौर- निवासी वास्तुकार परिवार के अहमद और उसके तीन पुत्रों ने किया। फारसी लिपि में लिखी गई फारसी गद्य की उस पुस्तक का लेखक है लत्फुल्ला महंदिस जो स्वयं वास्तुकार के तीन पुत्रों में से एक था, पाण्डुलिपि लगभग ३०० वर्ष पुरानी अर्थात् शाहजहाँ के शासनकाल के अन्तिम वर्षों की है।
"इन विषयों के अधिकारी विद्वान्, शिबले अकादमी आजमगढ़ के प्रधानाचार्य सैयद सुलेमान नदवी ने घोषणा की है कि संसार में यही एकमात्र प्रति उपलब्ध है।
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