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ताजमहल मन्दिर भवन है

पुरुषोत्तम नागेश ओक

प्रकाशक : हिन्दी साहित्य सदन प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15322
आईएसबीएन :9788188388714

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पी एन ओक की शोघपूर्ण रचना जिसने इतिहास-जगत में तहलका मचा दिया...


'पुस्तक स्वयं महंदिस के अपने हाथों से लिखी है। जैसा कि विभिन्न पद्यों से परिलक्षित होता है, लेखक शाहजहाँ के बड़े लड़के दाराशिकोह का प्रबल अनुसरणकर्ता था। और अब दाराशिकोह को पराजित कर औरंगजेब बादशाह बन गया तो लेखक एवं उसके परिवार को बहुत हानि उठानी पड़ी। उसने बादशाह के समक्ष अपनी याचिका (पृष्ठ ६७) प्रस्तुत की किन्तु जब उस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया तो उसके परिवार को लुक-छिपकर दरिद्रतापूर्ण (पृष्ठ ६८) जीवन व्यतीत करना पड़ा।

"ऐसा प्रतीत होता है कि औरंगजेब के भय के कारण उस परिवार ने पुस्तक को बड़ी सावधानी से छिपाकर रखा था, क्योंकि उसमें दाराशिकोह की प्रशंसा में पद्य थे। कालान्तर की तिथियों तथा पुस्तक के आखिरी पृष्ठ से विदित होता है कि उसे ऐतिहासिक व्यक्ति नवाब इब्राहीम खाँ हजबर जंग, प्रसिद्ध मुसलमान सैनिक अधिकारी जो 'गर्दी' उपनाम से विख्यात थे तथा १७६१ के पानीपत के में जिन्होंने अहमदशाह अब्दाली के विरुद्ध मराठों का साथ दिया था, उनके निजी पुस्तकालय में लाकर रखा गया था। वह पुस्तक वंशानुक्रम से वर्तमान परिवार के अधिकार में आई, किन्तु उसकी ओर तब तक किसी का ध्यान नहीं गया, जब तक विख्यात इतिहासकार, लेखक एवं मुआरिफ (लेखक-संघ तथा शिबली अकादमी, आजमगढ़, उ. प्र. का मासिक मुखपत्र) के सम्पादक सैयद सुलेमान नदवी ने इसकी खोज न की और उससे प्राप्त सामग्री एकत्रित कर ताजमहल के निर्माता शीर्षक से एक बड़ा लेख तैयार करके उसे पंजाब यूनिवर्सिटी में पढ़ न लिया।

"लेख में वर्णित पुस्तिक के दो पृष्ठों के पदों में लेखक शाहजहाँ की संस्तुति करता है और अपने पिता अहमद को 'नदर-उल-असर' (संसार में विलक्षण) सर्वोच्च शिल्पी, रेखाओं का ज्ञाता, खगोलशास्त्री तथा महान् कलाकार कहता है, उसे शाहजहाँ के राजकीय आदेशानुसार राजकीय वास्तुकार के रूप में नियुक्त किया और वह आगरा में ताजमहल तथा दिल्ली में लाल किला का निर्माता था। ताज के निर्माण के दो वर्ष बाद १६४९ में उसकी मृत्यु हो गई। लेखक, उसके पुत्र तथा ताजमहल के सहनिर्माता ने उसके चरणों में बैठकर शिक्षा ग्रहण की।"

उपरिलिखित विवरण के अनुसार ताजमहल का निर्माण कार्य अर्जुमन्द बानू बेगम की मृत्यु के १६ से १७ वर्ष की अवधि में पूर्ण हो गया था न कि १२, १३ या २२ वर्ष में जैसा कि पूर्ववर्ती विवरणों में उल्लिखित है।

हम लेखक मियाँ मुहम्मदखान से सहमत हैं कि "वास्तुकारों की खोज में परिश्रमपूर्वक किए गए प्रयत्नों के बावजूद, जिन्होंने उसकी योजना बनाकर 'संगमरमर के स्वज' को मूर्तरूप दिया, उनका परिचय अभी भी रहस्य ही बना हुआ है।

इसका अभिप्राय यह हुआ कि उपरि उद्धृत विश्व ज्ञान-कोश में जो नाम दिए गए हैं, उन्हें किसी ने भी विश्वसनीय नहीं माना। यदि वे नाम विश्वसनीय मान लिये जाते तो फिर कोई भी व्यक्ति 'वास्तविक नाम की खोज करने का कष्ट नहीं उठाता। यह खोज कभी भी समाप्त नहीं होगी, क्योंकि यह गलत दिशा में की जा रही है। यह कभी न समाप्त होनेवाली खोज स्वयं इस बात का प्रमाण है कि शाहजहाँ ने ताजमहल नहीं बनवाया। यदि उसने वास्तव में ताजमहल बनवाया होता तो वास्तुकारों के नाम तथा अन्य वैध तथ्य उसके दरबारी इतिहास में स्थान अवश्य पाते।

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    अनुक्रम

  1. प्राक्कथन
  2. पूर्ववृत्त के पुनर्परीक्षण की आवश्यकता
  3. शाहजहाँ के बादशाहनामे को स्वीकारोक्ति
  4. टैवर्नियर का साक्ष्य
  5. औरंगजेब का पत्र तथा सद्य:सम्पन्न उत्खनन
  6. पीटर मुण्डी का साक्ष्य
  7. शाहजहाँ-सम्बन्धी गल्पों का ताजा उदाहरण
  8. एक अन्य भ्रान्त विवरण
  9. विश्व ज्ञान-कोश के उदाहरण
  10. बादशाहनामे का विवेचन
  11. ताजमहल की निर्माण-अवधि
  12. ताजमहल की लागत
  13. ताजमहल के आकार-प्रकार का निर्माता कौन?
  14. ताजमहल का निर्माण हिन्दू वास्तुशिल्प के अनुसार
  15. शाहजहाँ भावुकता-शून्य था
  16. शाहजहाँ का शासनकाल न स्वर्णिम न शान्तिमय
  17. बाबर ताजमहल में रहा था
  18. मध्ययुगीन मुस्लिम इतिहास का असत्य
  19. ताज की रानी
  20. प्राचीन हिन्दू ताजप्रासाद यथावत् विद्यमान
  21. ताजमहल के आयाम प्रासादिक हैं
  22. उत्कीर्ण शिला-लेख
  23. ताजमहल सम्भावित मन्दिर प्रासाद
  24. प्रख्यात मयूर-सिंहासन हिन्दू कलाकृति
  25. दन्तकथा की असंगतियाँ
  26. साक्ष्यों का संतुलन-पत्र
  27. आनुसंधानिक प्रक्रिया
  28. कुछ स्पष्टीकरण
  29. कुछ फोटोग्राफ

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