इतिहास और राजनीति >> ताजमहल मन्दिर भवन है ताजमहल मन्दिर भवन हैपुरुषोत्तम नागेश ओक
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पी एन ओक की शोघपूर्ण रचना जिसने इतिहास-जगत में तहलका मचा दिया...
तीसरा प्रश्न है कि क्या शाहजहाँ गलियारे में कोई खेल खेल रहा था या एक घटिया, केवल मात्र वास्तुकृति के नमूने के विशेषाधिकार की इच्छा करता था कि जिससे कि कोई अन्य दूसरा ताजमहल बनाने का अधिकार न जता सके, और क्या वह वास्तव में अतीवरूपेण शोकातुर भी था? एक बार तो हमें बताया गया (टैवर्नियर द्वारा) कि शाहजहाँ ने जनता का मन जीतने के लिए मुमताज़ को बाजार के निकट दफनाया। उसके बाद हमें बताया गया कि उसने वास्तुकार की इसलिए हत्या कर दी कि वह कहीं किसी वैसे ही बड़े मुगल को उपकृत करने के लिए प्रतिस्पर्धी स्मारक न बना दे। यह सब हमें आश्चर्यचकित कर देता है कि शाहजहाँ कोई प्रतिष्ठित बादशाह था या कि शेक्सपियर के नाटकों में विवेचित कोई विदूषक, जिसका एक हाथ तो (मरणासन्न) मुमताज़ की नाड़ी पर हो और आँखें प्रशंसा प्राप्त करने के लिए जनता की ओर।
तदपि एक अन्य प्रश्न है कि शाहजहाँ इतना सुकोमल हृदय था कि अपनी सारी सम्पत्ति अपनी पत्नी का स्वप्निल मकबरा बनवाने में व्यय कर दे और फिर वह सहसा ऐसा वन्य और क्रूर बन जाए कि जिस वास्तुकार ने उसके स्वप्न को साकार किया उसी की हत्या करवा दे?
अन्य संदेह जो उठता है वह है जब शाहजहाँ ने अपनी सारी सम्पत्ति एक शव को अनश्वर बनाने के लिए व्यय कर दी तो फिर क्या उसने अपने मन में यह पहले ही ठान लिया था कि वह आजीवन फटे-पुराने कपड़े पहनता रहेगा?
ये इस प्रकार की असीम असंगतियाँ हैं जिनका यथार्थ शोध विश्वविख्यात इतिहासकारों को करना चाहिए।
भारतीय इतिहास-लेखन में जिस मात्रा में छलना का प्रवेश हुआ है वह बड़ी ही आश्चर्यकारक है।
गुप्तचरीय अन्वीक्षा, विधिवेत्ता सदृश प्रश्न पद्धति, तार्किक संगतियाँ और ऐसे अन्य सब निदेशक सिद्धान्त जो रीतिशास्त्र रेनियर वाल्श तथा कौलिंगवुड सदृश सुविख्यात जनों ने सुझाए हैं उनकी पूर्णतया उपेक्षा कर दी गई है और हमें ऐसा इतिहास पढ़ने के लिए दिया गया जिसको साधारण सूक्ष्म प्रश्न के आधार पर टुकड़े- टुकड़े किया जा सकता है।
उक्त लेखक मियाँ मुहम्मद खान दावा करता है कि 'अन्ततः रहस्य उद्घाटित हो गया।' हम चाहते हैं कि वास्तव में उसे वह रहस्य प्राप्त हो गया होता। हम उसके दावे के इस भाग को स्वीकार करने के लिए तैयार हैं कि ताजमहल के निर्माण के सम्बन्ध में अब तक जो विवरण अथवा लेख किसी अन्य वास्तुकार की ओर संकेत करते हैं वे मिथ्या हैं; किन्तु उसके दावे का दूसरा भाग कि उसका कथन इस सम्बन्ध में अन्तिम है, हमें भय है कि यह स्वीकार्य नहीं हो सकता।
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- प्राक्कथन
- पूर्ववृत्त के पुनर्परीक्षण की आवश्यकता
- शाहजहाँ के बादशाहनामे को स्वीकारोक्ति
- टैवर्नियर का साक्ष्य
- औरंगजेब का पत्र तथा सद्य:सम्पन्न उत्खनन
- पीटर मुण्डी का साक्ष्य
- शाहजहाँ-सम्बन्धी गल्पों का ताजा उदाहरण
- एक अन्य भ्रान्त विवरण
- विश्व ज्ञान-कोश के उदाहरण
- बादशाहनामे का विवेचन
- ताजमहल की निर्माण-अवधि
- ताजमहल की लागत
- ताजमहल के आकार-प्रकार का निर्माता कौन?
- ताजमहल का निर्माण हिन्दू वास्तुशिल्प के अनुसार
- शाहजहाँ भावुकता-शून्य था
- शाहजहाँ का शासनकाल न स्वर्णिम न शान्तिमय
- बाबर ताजमहल में रहा था
- मध्ययुगीन मुस्लिम इतिहास का असत्य
- ताज की रानी
- प्राचीन हिन्दू ताजप्रासाद यथावत् विद्यमान
- ताजमहल के आयाम प्रासादिक हैं
- उत्कीर्ण शिला-लेख
- ताजमहल सम्भावित मन्दिर प्रासाद
- प्रख्यात मयूर-सिंहासन हिन्दू कलाकृति
- दन्तकथा की असंगतियाँ
- साक्ष्यों का संतुलन-पत्र
- आनुसंधानिक प्रक्रिया
- कुछ स्पष्टीकरण
- कुछ फोटोग्राफ