इतिहास और राजनीति >> ताजमहल मन्दिर भवन है ताजमहल मन्दिर भवन हैपुरुषोत्तम नागेश ओक
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पी एन ओक की शोघपूर्ण रचना जिसने इतिहास-जगत में तहलका मचा दिया...
तदपि बंगलौर-निवासी मुहम्मद खाँ के पुस्तकालय में प्राप्त पाण्डुलिपि की खोज को हम विशेष महत्त्व देते हैं, क्योंकि इससे हमारी खोज जो बहुत पहले की थी, को सुदृढ़ समर्थन प्राप्त होता है। हमारा दृढ़ मत है कि अब तक किसी इतिहासकार अथवा विश्वविद्यालय ने यह साहस नहीं किया कि ताजमहल के निर्माण से सम्बन्धित शाहजहाँ की अधिकृति पर समस्त भ्रान्त कथनों अथवा उल्लेखों को एक स्थान पर संगृहीत कर सके। कोई भी इस कार्य की सफलता की आशा नहीं कर सकता। यह तो ठीक वैसा होगा जैसा कि जालसाजी के गम्भीर गर्त को नापने अथवा किसी गल्प सागर को सीमित करने का दुष्प्रयास।
अतः जो मियाँ मोहम्मद खान ने खोज की है वह और कुछ नहीं अपितु एक अन्य कपोल-कल्पित विवरण है। इस प्रकार के कितने ही विवरण संसार के किसी भी भाग में खोजे जा सकते हैं, क्योंकि कौन जानता है कि पिछले ३०० सालों के मध्य ताजमहल के निर्माण पर शाहजहाँ की अधिकृति के सम्बन्ध में कितने ही लोगों ने अपनी कलम चलाई किन्तु वे भी मात्र मन-गढन्त विचार ही प्रकट करके रह गए।
उक्त लेख में स्वयं इस प्रकार के संकेत हैं कि जिससे उसके असत्य होने का प्रमाण प्राप्त हो जाता है। उक्त पाण्डुलिपि में झूठे और उलझनपूर्ण विवरणों का ऐसा समूह है कि जिससे एक मुगल राजकुमार की प्रशंसा करना तथा लेखक के पिता और दो भाइयों सहित स्वयं ताजमहल के प्रमुख निर्माता का झूठा श्रेय अर्जित करना। और यह तथ्य कि औरंगजेब के भय से उस पाण्डुलिपि को किसी गुप्त स्थान पर छिपाने आदि की बात से यह सिद्ध होता है कि लतफुल्ला खाँ ने तोता-मैना के किस्सों की भाँति, जो कि अन्य मुसलमानी विवरणों से किंचित भी रोचक नहीं, उसने भी एक षड्यन्त्र रचा।
औरंगजेब इतना काँइया, निर्मम और निर्बुद्धि बादशाह था कि वह किसी प्रकार की कल्पना और गल्पयुक्त दावे को सहन कर ही नहीं सकता था। जब वह अपने वैयक्तिक अनुभव से (आधुनिक इतिहासकारों की भाँति नहीं) जानता था कि ताजमहल एक अधिकृत हिन्दू प्रासाद है तो कौन मुसलमान शिल्पकार या वास्तुकार यह कहने का साहस कर सकता था कि वह उसका निर्माता है? यही कारण है कि लतफुल्ला ने अपनी बेगारी के क्षणों में कुछ परसियन पद्य लिखे और उन्हें किसी स्थान पर छिपा दिया जिससे कि भावी पीढ़ी धोखे में आ जाए। वह कोई बहुत गलत था ऐसा प्रतीत नहीं होता, क्योंकि जब हमने उसके विवरण देखे तो हमें उस पर विश्वास करने के लिए कहा गया कि ताजमहल के सम्बन्ध में यही अन्तिम एवं निर्णायक है। परन्तु खेद है कि उसका यह सद्य:प्राप्त कथन भी भावी पीढ़ी ने बड़े बेमन से देखा और गरम ईंट की भाँति परे फेंक दिया। यह कोई भी प्रभाव उत्पन्न करने में असफल रहा। फिर दूसरी प्रकार की वह आशा ही क्या कर सकता था? शाहजहाँ द्वारा ताजमहल बनाए जाने से सम्बन्धित किसी भी कथन को प्रश्नों की बौछार सहनी पड़ेगी, इस प्रकार लतफुल्ला महंदिस का दावा भी अप्रभावित भावी पीढ़ी ने बिना उस पर किसी प्रकार का विचार-विमर्श किए ही, चुपचाप इतिहास की नाली में डाल दिया है।
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- प्राक्कथन
- पूर्ववृत्त के पुनर्परीक्षण की आवश्यकता
- शाहजहाँ के बादशाहनामे को स्वीकारोक्ति
- टैवर्नियर का साक्ष्य
- औरंगजेब का पत्र तथा सद्य:सम्पन्न उत्खनन
- पीटर मुण्डी का साक्ष्य
- शाहजहाँ-सम्बन्धी गल्पों का ताजा उदाहरण
- एक अन्य भ्रान्त विवरण
- विश्व ज्ञान-कोश के उदाहरण
- बादशाहनामे का विवेचन
- ताजमहल की निर्माण-अवधि
- ताजमहल की लागत
- ताजमहल के आकार-प्रकार का निर्माता कौन?
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- शाहजहाँ भावुकता-शून्य था
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- बाबर ताजमहल में रहा था
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