इतिहास और राजनीति >> ताजमहल मन्दिर भवन है ताजमहल मन्दिर भवन हैपुरुषोत्तम नागेश ओक
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पी एन ओक की शोघपूर्ण रचना जिसने इतिहास-जगत में तहलका मचा दिया...
एक अन्य भ्रान्त विवरण
अपनी योजनानुसार, पाठकों को ताजमहल के मौलिक निर्माण से सम्बद्ध अनेक पारम्परिक एवं भ्रामक विवरणों के नमूने के रूप में उदाहरणों में परिचित कराने के लिए हम यहाँ 'दि इलस्ट्रेटेड वीकली ऑफ इण्डिया' में प्रकाशित एक अन्य लेख* के उद्धरण प्रस्तुत कर रहे हैं। लेख इस प्रकार आरम्भ होता है:
* दि इलस्ट्रेटेड वीकली ऑफ इण्डिया के ३०-१२-१९५१ के अंक में 'ताजमहल के सम्बन्ध में कुछ तथ्य' शीर्षक से प्रकाशित मुहम्मद दीन का लेख।
"जब ताजमहल का निर्माण हुआ था तो जो बहुत से यांत्रिक उपकरण आज उपलब्ध हैं वे तब नहीं थे। तो भी इसके निर्माण कार्य में जिस असाधारण बुद्धिकौशल तथा उच्चकोटि के अभियांत्रिकी श्रम का परिचय दिया है वह मस्तिष्क को चकित करता है।
"जो कारीगर नियुक्त किए गए उनकी बुद्धि और श्रम भी कम सराहनीय नहीं। इस महान् शिल्प स्वप्न को ईंट और गारे से उतारने के लिए ९६७ फीट लम्बे और ३७३ फीट चौड़े क्षेत्र में ४४ फीट गहरा खोदा गया, जहाँ भूगर्भ-स्थित पानी की सतह थी। खोदे गए सारे क्षेत्र को तरल चूने में पत्थर के टुकड़ों को डालकर भरा गया जिससे कि ताजमहल, जामा-यत-खाना और एक मस्जिद, जो सब एक-दूसरे से सटे हुए थे, उनकी नींव को एकसार किया जा सके। लगभग २० हजार व्यक्ति इस कार्य पर नियुक्त किए गए।
'इस नींव पर ३१३ फीट वर्गाकार और 6 फीट ऊँचा, ताजमहल का स्तम्भ- पीठ जिसका बाहरी आवरण संगमरमर के पत्थर और गारे-चूने का बनाया गया था, इस आवरण को टूटे-फूटे पत्थर का आधार तैयार करने के बाद उसकी आकृति के अनुरूप ऊँचाई तक रखा गया"तब वह संगमरमर का आधार स्थिर किया गया।
"मुख्य अभियांत्रिकी की समस्या थी, उस कार्यकाल में आवश्यक निर्माण- सामग्री को उस ऊँचाई तक पहुँचाना, यह कार्य वर्गाकार लकड़ी के खम्भों को एक साथ बाँधकर अत्यन्त परिश्रम से शीर्ष ऊँचाइयों तक कसकर किया गया। सामान से लदे खच्चर और खच्चरगाड़ियों के आवागमन के लिए ४० फीट चौड़ा घुमावदार चबूतरेनुमा मार्ग बनाया गया जो १x२० के अनुपात में ढलवां था। यह घुमावदार मार्ग गुम्बद के चारों ओर घूमता था और यह तब तक स्थिर रहा जब तक कि भूतल से २४० फीट की ऊँचाई तक निर्माण कार्य सम्पन्न नहीं हो गया। मचान और घुमावदार मार्ग बनाने के लिए विशिष्ट अभियन्ता नियुक्त किए गए तथा ५०० बढ़ई और ३०० लोहार भी इस कार्य पर नियुक्त किए गए। उस घुमावदार मार्ग की लम्बाई ४,८०० फीट थी। संगमरमर के भारी पत्थर चरखियों द्वारा जो कि उस मार्ग में गाड़ी गई थीं, ऊपर ले जाए जाते थे। उनको बैल और खच्चर खींचते थे।
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