इतिहास और राजनीति >> ताजमहल मन्दिर भवन है ताजमहल मन्दिर भवन हैपुरुषोत्तम नागेश ओक
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पी एन ओक की शोघपूर्ण रचना जिसने इतिहास-जगत में तहलका मचा दिया...
इस विशाल कार्य के लिए निर्माण सामग्री अनेक दूरस्थ स्थानों से मंगाई गई थी। संगमरमर का पत्थर राजस्थान के मकराना से प्राप्त किया गया था, जिसके लिए लगभग एक सहस्र हाथी लगाए गए। पत्थर के एक टुकड़े का अधिकतम भार लगभग ढाई टन होता था जिसे एक हाथी सरलतापूर्वक ढो सकता था। चरखियों को चलाने के लिए भी बहुत हाथी लगाए गए थे।
"मचान के लिए लकड़ी काश्मीर और नैनीताल के वनों से लाई गई थी। ईंट तथा अन्य हलकी सामग्री को निर्माण-स्थल तक ले जाने के लिए २,००० ऊँटों और १,००० बैलगाड़ियों की व्यवस्था थी और लगभग १,००० खच्चर उस सामग्री को उठाकर घुमावदार मार्ग से ऊपर ले जाते थे।
'गुम्बद आदि के लिए वांछित संगमरमर को भूतल पर ही साँचे में ढाला जाता था और फिर उसको चरखियों द्वारा ऊपर पहुँचाकर अपेक्षित स्थान पर स्थिर किया जाता था।
जब मुख्य गुम्बद का कार्य सम्पन्न हो गया उसके बाद संलग्न भवनों तथा सहायक भवनों का कार्य हाथ में लिया गया और उसे भी उसी प्रकार पूर्ण किया गया"
ताजमहल के चार कोनों पर चार मीनारें हैं...
"यमुना नदी उस ढाँचे से आधा मील दूर थी। जब भवन-निर्माण-कार्य सम्पूर्ण हो गया तो फिर कृत्रिम रूप से यमुना को ताज के बराबर से बहाया गया जिससे कि उस स्थान की सुन्दरता में वृद्धि हो...
"तत्कालीन मुसलमान लेखकों ने ताजमहल के आयोजकों और निर्माताओं के नामों तथा उसमें प्रयुक्त मूल्यवान पत्थरों के नामों तथा उनकी मात्रा का भी उल्लेख किया है। ऐसा प्रतीत होता है कि मोहम्मद ईसा अफन्दी जो तुर्किस्तान का था, उसका प्रमुख प्रारूपकर्ता एवं शिल्पकार था। निर्माण कार्य पर जिन अन्य विदेशी लोगों को लगाया गया वे अरब, फारस, सीरिया, बगदाद तथा समरकन्द के थे, और कम-से-कम एक फ्रांसीसी सुनार औस्टीन डी बोरडीक्स था।
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