इतिहास और राजनीति >> ताजमहल मन्दिर भवन है ताजमहल मन्दिर भवन हैपुरुषोत्तम नागेश ओक
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पी एन ओक की शोघपूर्ण रचना जिसने इतिहास-जगत में तहलका मचा दिया...
उपरिउद्धृत उद्धरण अनेक कारणों से महत्त्वपूर्ण है। इससे ताजमहल से सम्बन्धित डिजाइनर और कारीगरों के विषय पर फैले भ्रम पर गहरा प्रकाश पड़ता। इस प्रकार की उलझन इसलिए उत्पन्न हुई, क्योंकि पीढ़ी-दर-पीढ़ी से प्रचलित कल्पित कथा के रिक्त स्थानों की पूर्ति के लिए गलत नामों का प्रयोग किया गया। ऐसे दुष्प्रयासों का परिणाम यह हुआ कि योरोपीय विद्वानों ने रिक्त स्थानों की पूर्ति के लिए ताजमहल की कलाकारिता का श्रेय फ्रांसीसी और इटालियन कलाकारों को दिया जबकि बढ़ा-चढ़ाकर लिखनेवाले मुसलमानी विवरणों में मुसलमान कलाकारों के कल्पित नामों से रिक्त स्थानों की पूर्ति की जाती रही है। इस द्विपक्षीय सन्देहास्पद स्थिति से ऐसा प्रतीत होता है कि इंपीरियल लाइब्रेरी पाण्डुलिपि में जिन हिन्दू शिल्पियों एवं कलाकारों के नाम मिलते हैं वे उन मूल शिल्पियों के हो सकते हैं जिन्होंने शाहजहाँ से शताब्दियों पूर्व ताजमहल का निर्माण किया था।
हावेल का यह लिखना है कि "वर्तमान समय में भी आगरा शैली के जो उत्तम कलाकार हैं वे भी हिन्दू ही हैं," स्पष्टतया हिन्दू कला की लम्बी परम्परा को सिद्ध करता है जिसका आदर्श प्रतिफलन ताजमहल है। इस प्रसंग में यह स्मरण रखना चाहिए कि मुसलमानों के आक्रमण के बाद सभी प्रकार की कला-विद्या और प्रशिक्षण अवरुद्ध हो गए। अलबरूनी द्वारा मोहम्मद गजनी के सम्बन्ध में लिखते हुए कहा गया है* कि उसने हिन्दुओं को धूल में मिलाने और उन्हें इधर-उधर बिखेरने का बीड़ा उठा रखा था। अलप्तगीन, सुबुक्तगीन तथा मोहम्मद गजनी द्वारा प्रारम्भ किए गए भारतीय जन-जीवन एवं संस्कृति को मटियामेट करने का संकल्प कम- से-कम औरंगजेब के काल तक तो उसी रूप में प्रचलित रहा। उसके बाद राष्ट्रीय शक्तियों के पुनरुत्थान के कारण ये विध्वंसकारी शक्तियाँ दुर्बल होने लगीं। उन भयावने स्वप्नों जैसे दिनों में भारतीयों को उनके नगरों एवं घरों से इस प्रकार खदेड़ दिया जाता था जैसे वे मानव-प्राणी नहीं अपितु कीड़े-मकोड़े हों। उस समय किसी भी कला के विकास और विद्या के प्रसार का क्या अवसर मिल सकता था? जैसा कि हावेल ने सिद्ध किया है कि वर्तमान समय में भी आगरा-शैली के कलाकार हिन्दू ही हैं, वे उनकी संतति ही हो सकते हैं जिनके पूर्वजों ने, भारत में मुसलमानी शासन के प्रादुर्भाव से पूर्व ताजमहल का निर्माण किया था। इससे इस निष्कर्ष की और भी पुष्टि होती है कि ताजमहल प्राचीन हिन्दू भवन है न कि मुगलकाल का तुलनात्मक मुसलमानी मकबरा।
* डॉ. एडवर्ड सचाउ द्वारा लिखित, 'अलबरूनीश इंडिया', के प्राक्कथन से।
ताजमहल ही एक ऐसा स्मारक नहीं है जिसे बनाने का मिथ्या श्रेय शाहजहाँ को दिया गया, यह हावेल के एक अन्य उल्लेख से स्पष्ट होता है। हावेल लिखता है* "मेरे मत से दिल्ली पीटा ड्यूरा (दिल्ली स्थित लाल किले के दीवाने-आम की शाही बालकनी की दीवारों पर चित्रांकित पत्तियों की आकृतियाँ) मिथ्यारूपेण शाहजहाँ के काल से जोड़ी गई हैं"पक्षियों एवं पशुओं की स्वाभाविक आकृतियों को उत्कीर्ण करना मुसलमानी विधान का उल्लंघन करना है। कुरान में स्पष्ट आदेशात्मक विधान है कि जो कुछ भी ऊपर स्वर्ग में है या उसके नीचे धरा पर है उसकी अनुकृति न बनाई जाए।"
* दि नाइनटीन्थ सेंचुरी एण्ड आफ्टर, भाग ३, पृष्ठ १०४९
क्योंकि पीटा ड्यूरा लाल किले का ही अभिन्न अंग है, बाद का विचार अथवा कला नहीं, अतः हावेल का यह विचार सत्य है कि दिल्ली का लाल किला जिसके निर्माण का श्रेय शाहजहाँ को दिया जाता है, उस पूर्व-मुस्लिम काल से ही विद्यमान था जब ऐसे चित्रांकन के मार्ग में न केवल किसी प्रकार की कोई बाधा विद्यमान थी अपितु वे राजकीय भवनों की शोभा के अनिवार्य अंग माने जाते थे। दिल्ली की जामा मस्जिद का निर्माण और पुरानी दिल्ली की स्थापना का श्रेय भी शाहजहाँ को गलती से दिया जाता है। इन दावों का किसी प्रकार के प्रमाण का शतांश भी तो कुछ उपलब्ध नहीं है। शाहजहाँ के दरबारी कागजों में से कोई एक ऐसा कागज का टुकड़ा ढूँढकर दिखा दे कि जिससे सिद्ध हो कि ताजमहल और अन्य जो भवन उसके बनवाए बताए जाते हैं, उसका उल्लेख हो। यदि इस प्रकार का कोई प्रमाण उपलब्ध होता तो किसी भी इतिहास के विद्वान् को अपना अनुमान लगाने की आवश्यकता न होती।
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