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अजनबी

राजहंस

प्रकाशक : धीरज पाकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :221
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15358
आईएसबीएन :0

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राजहंस का नवीन उपन्यास

"इन्हें रख लो।"

"लेकिन ये सब...।"

"आप आयेंगे।” और दूसरे ही क्षण विकास कमरे से बाहर आ गया।

इतनी जल्दी हुआ कि लता की समझे में कुछ भी नहीं आ सका कि वह क्या करे। वह विकास को जाते देखती रह गई।

जब विकास की गाड़ी चल दी तो लता का ध्यान हाथ में पकड़े नोटों पर गया। उसके हाथ में सौ-सौ के पांच नोट थे। लता ने दरवाजे की चिटकनी चढ़ाई और फिर पलंग पर लेट गई।

विकास इतना सब खर्च उसके लिये क्यों कर रहा था। जब उसकी समझ में कुछ नहीं आया तो उसने उठकर नोटों को आलमारी में रखने के लिये आलमारी खोली तो उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा। जब उसने आलमारी में एक प्यारा सा पर्स रखा देखा।

लता ने पर्स में रुपये रखे और अपने बिस्तर पर लेट गई। और फिर तुरन्त ही निन्द्रा देवी की गोद में पहुंच गई।

किंग... किंग की आवाज से लता की नींद खुल गई। . उसने सोचा इतनी सुबह कौन हो सकता था। तभी फिर बैल बजी। लता उठीं। लता ने अपने कपड़े ठीक कियेफिर दरवाजे की

चटकनी खोलकर बाहर देखा। बाहर विकास सज़ा-संवराः खड़ा था।

"अरे इतनी सुबह तुम।” लता के मुख से अनायास ही निकले। गया।

"सॉरी लता। मुझे ख्याल ही नहीं रहा तुम सोई होंगी।" विकास ने अफसोस भरे स्वर में कहा।

“असल में रात देर से सोई इसी से नींद नहीं खुली।" लता ने कहा।

"अन्दर नहीं बुलाओगी।"

"ओह सॉरी...आओ।" लता ने कहा और रास्ता छोड़ दिया। विकास अन्दर आया और सोफे पर बैठ गया।

“आओ तुम भी बैठो।" विकास ने अपने पास बैठने का इशारा किया।

लता दूसरे सोफे पर बैठ गई। दोनों कुछ देर चुपचाप बैठे रहे।

"मैं तुमसे ये कहने आया था कि मेरे डैडी कल आयेंगे। तब मैं तुम्हारी नौकरी की बात करूंगा। तुम कोई चिन्ता मत करना। हाँ यदि डैडी तुमसे मिलना चाहेंगे तो तुम मिल लेना।” विकास ने चुप्पी को तोड़ते हुये कहा।

"ठीक है...लेकिन वो मुझसे क्या पूछेगे?" लता ने पूछा।

"अरे ज्यादा कुछ नहीं यही देखेंगे...तुम नौकरी कर सकती हो या नहीं।”

"अगर उन्होंने मना कर दिया...तब क्या होगा।” घबराहट भरे स्वर में लता ने कहा।

"ऐसा नहीं होगा...हाँ इस फ्लैट के विषय में डैडी से कुछ नहीं कहना।”

“तुमने इतना सब खर्च क्यों किया विकास?"

"क्यों क्या तुम्हारे लिये कुछ करने को मेरा अधिकार नहीं है।"

"विकास...मैं कल से यही सोच रही हूं...तुम्हारा मेरा रिश्ता ही क्या...सिर्फ कालेज के सहपाठी...तब भी तुमने मेरे लिये इतना सब किया है...मेरी मामी ने मुझे बचपन से पाला-पोसा...लेकिन। फिर भी वह मुझे अपना प्यार नहीं दे सकी..एक बला समझकर एक बूढ़े से मेरी शादी तय कर दी...ऐसा क्यों है?”

“लता तुम नहीं समझ सकती...तुम्हारा मेरा क्या रिश्ता है, जिस दिन समझ जाओगी वह दिन मेरे लिये भाग्यशाली होगी।"

"क्या...?"

“लता...तुम नहीं जानती..मैंने कालेज में जब पहली बार तुम्हें देखा था...तभी से तुम्हें प्यार करता आ रहा हूं...एक दिन भी ऐसा नहीं हुआ जो मैंने तुम्हारे सपने न देखे हों...तुम तो जाती ही हो...मेरे। डैडी के पास इतना पैसा है कि हमारी सात पीढ़ी भी खाये तो खत्म नहीं होगा।” विकास कुछ देर रुका।

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