सामाजिक >> अजनबी अजनबीराजहंस
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राजहंस का नवीन उपन्यास
उसने लता के चेहरे पर नजर डाली। लता की निगाहें झुकी हुई थीं।
विकास ने फिर कहना शुरू किया-“लता सच कहता हूं...मुझे पैसे की कमी नहीं है...मेरे पास प्यार की कमी है...मुझे प्यार की जरूरत है...जो मुझे सिर्फ तुम दे सकती हो...बोलो लता..क्या मैं तुमसे उम्मीद करूं कि तुम मुझे सच्चा प्यार दोगी।" विकास ने उठकर लता के दोनों हाथ अपने हाथों में ले लिये।
लता बुत की तरह बैठी की बैठी रह गई। उसमें कुछ भी कहने की शक्ति नहीं रह गई थी। पर उसे कुछ तो कहना ही था। तभी विकास ने फिर कहा-“बोलो लता यदि मेरी बात बुरी लगे तो मुझे यहाँ से धक्के मारकर निकाल दो।"
"विकास प्लीज...मुझे थोड़ा सोचने दो...एकंदम इतना बड़ा निर्णय मैं कैसे करू..और धक्के मारने की बात तो यह है...यहाँ मेरा है ही क्या सब तुम्हारा ही है।" लता ने अपने हाथ छुड़ाते हुये कहा।
"लता...ऐसा नहीं सोचना कि ये सब मैने अपने स्वार्थ के। वशीभूत किया है...अगर तुम मेरा प्रस्ताव ठुकरा भी दोगी...तब भी, मैं तुम्हारी मदद के लिये संदा तैयार मिलूंगा।” विकास की आंखों
में आंसू भरे थे।
"अच्छा लता शाम को तैयार रहना। क्लब चलेंगे तब तक तुम अपने मन में सोच-विचार भी कर लेना...मैं चला।” कहते हुये विकास उठ खड़ा हुआ। दरवाजे के पास जाकर विकास ने हाथ हिलाया और तेजी से निकल गया।
लता हैरान सी खड़ी रह गई। विकास अपना जाल लता के चारों ओर मजबूती से फैला चुका था।
लता की समझ में नहीं आ रहा था कि वह विकास के प्रस्ताव को स्वीकार करे या ठुकरा दे। यदि वह उसके प्रस्ताव को ठुकरा देगी तो वह उसकी दया पर निर्भर भी नहीं रहेगी...पर फिर वह कहाँ जायेगी...कौन है जो उसे इस प्रकारे सहारा देगा।
लता की एक कमजोरी पैसा भी थी। वह बचपन से एक ख्वाब देखती आई थी अपने एक सुन्दर घर का। जिसमें वह होगी...उसका पति होगा...कार होगी...चपरासी होंगे। उसे पैसे की कमी न होगी...तब उसे मामी की गालियां भी नहीं सुननी होंगी।
आज उसे लगा उसका सपना साकार होने जा रहा है। विकास को ठुकराने के बाद वह कभी सुख से नहीं रह पायेगी। फिर विकास में कमी भी क्या है। करोड़पति बाप का बेटा है। सुन्दर है, पढ़ा-लिखा है। एक लड़की को इसके अलावा चाहिये भी क्या...सब कुछ तो उसके पास है।
सोचते-सोचते लता का सिर दर्द से फटने लगा। उसने सिर को झटका और घड़ी पर नजर डाली। घड़ी दोपहर के बारह बजा रही थी। उसे ख्याल आया...अभी तक उसने चाय भी नहीं पी है। यही कारण था उसके सिर में दर्द होने लगा था। लता उठी और रसोई में चाय बनाने चल दी।
विकास ने रामू को सिखा-पढ़ाकर सही कर लिया था। अब सिर्फ डैडी के आने की देर थी। लता के घर से निकलकर वह सीधी अपनी कोठी पर आ गया। विकास स्नान आदि से निबट" कुर रामू काका के पास पहुंचा।
"काका बड़ी भूख लगी है...कुछ खाने को दो।” विकास ने रामू से कहा।
"अभी लाया छोटे सरकार...आप सुबह-सुबह कहाँ चले गये। थे...मैं तो बड़ी देर से नाश्ता बनाकर बैठा हूं।” रामू ने प्लेट पोंछते हुये कहा।
विकास अपने कमरे में आ गया। कुछ देर बाद रामू ट्रे में नाश्ता व दूध लेकर आ गया। उसने मेज पर सब सामान लगा। दिया।
"काका इस समय तो एक कप चाय की जरूरत थी...तुम दूध लेकर आ गये।” विकास ने दूध को गिलास देखते हुये कहा।
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