सामाजिक >> अजनबी अजनबीराजहंस
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राजहंस का नवीन उपन्यास
"अभी बनाकर लाया।" और रामू रसोई की तरफ चल दिया। जितनी देर में विकास ने नाश्ता किया रामू चाय लेकर आया।
विकास ने चाय पी फिर रामू से बोला-“काका मैं आफिस जा रहा हूं।
विकास गाड़ी में बैठा और तुरन्त ही उसकी कार गेट से बाहर हो गई। इधर विकास की कार सड़क पर दौड़ी चली जा रही थी। और उधर उसका मन लता के ख्यालों में दौड़ रहा था।
विकास चाहता था कि लता को इस प्रकार अपने जाल में, फंसाये कि वह कभी उससे बाहर न निकल सके। ऐसा नहीं था। कि विकास तता को दिल से चाहता था। उसकी तों हर रात एक नई तितली के साथ होती थी। एक बार जो उसकी बांहों में आ
जाती...विकास उसे दोबारा कभी अपने आस-पास भी नहीं आने देता था। उसके पैसे में इतनी ताकत थी कि वह जो चाहता उसको पाने में उसे सेकेण्ड भी नहीं लगते थे।
इसके अलावा एक लता ही ऐसी लड़की थी, जो कभी भी उसके हाथ नहीं आ पाई थी। लेकिन आज किस्मत ने उसका साथ दिया था। और जिस लता को वह चार साल से नहीं पा सका था-वह एक दिन में ही उसके जाल में फंस गई थी।
विकास जानता था दुनिया में लता का मामा-मामी के अलावा कोई नहीं है। और उनके पास वह कभी जाना पसंद नहीं करेगी।
दूसरा सहारा मुकेश है, पर मुकेश तीन महीने से पहले १, अस्पताल से वापिस नहीं हो सकेगा। फिर मुकेश के लिये वह लता के दिल में नफरत का बीज बो चुका है। ऐसे में लता के सामने ‘एक ही रास्ता है, और वह था विकास का प्रस्ताव स्वीकार करना।
विकास के चेहरे पर एक कुटिल मुस्कुराहट फैल गई। सामने फैक्ट्री का बोर्ड चमक रहा था। विकास की गाड़ी फैक्ट्री के अन्दर घुसती चली गई। फैक्ट्री के लोग इस गाड़ी को अच्छी तरह से जानते थे। सब विकास के आगमन से सतर्कता से अपने काम में जुट गये।
जब लता ने घड़ी में छः बजे का समय देखा तो उसने तैयार , होना शुरू किया। लता अलमारी के पास आई। अलमारी खोलकर 'खड़ी हो गई। उसमें एक से एक सुन्दर साड़ी टंगी थी। लता ने मन ही मन विकास की पसन्द की दाद थी। फिर उसने एक हल्के आसमानी रंग की साड़ी हैंगर से निकाली, साड़ी के साथ ही ब्लाऊज भी टंगा हुआ था। लता की समझ में नहीं आ रहा था कि विकास
को उसका नाप कहाँ से मिला और कुछ ही घंटों में उसने ब्लाऊज किस टेलर से सिलवा लिये। फिर उसने ब्लाऊज खोलकर देखा वह रेडीमेड था। अब उसकी समझ में सब आ गया।
लता ने साड़ी पहनी और मेकअप करने लगी। आज पहली बार उसने इतने सुन्दर ढंग से अपने को सजाया था। तैयार होने के बाद उसे लगा जैसे ये रोज वाली लता न होकर कोई और ही हो। वह अपने रूप को देखती ही रह गई।
तभी दरवाजे पर दस्तक हुई, लता धीरे-धीरे गई और उसने। दरवाजा खोल दिया। उसके अनुमान के अनुसार विकास ही था। . विकास लता को देखता ही रह गया।
विकास ने हजारों लड़कियां देखी थीं, पर ऐसा रूप आज तक उसकी नज़रों से नहीं गुजरा था। विकास का मन हुआ कि वह लता को बांहों में समेट ले पर उसने अपने को रोक लिया।
"गजब ढा रही तो लता तुम तो...।” विकास ने मुस्कुराते हुये कही।
"अन्दर आ जाओ।" लता ने कहा और रास्ते से हट गई।
विकास सोफे पर पसर गया।
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