सामाजिक >> अजनबी अजनबीराजहंस
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राजहंस का नवीन उपन्यास
"चाय चलेगी।” लता ने विकास से पूछा।
"नहीं भई...अब तो सब कुछ क्लब में ही चलेगा, तैयार हो ना।
"बड़े थके नजर आ रहे हो...कुछ देर आराम कर लो।"
"हाँ ये ठीक है।" शायद विकास ऐसा ही चाहता था फिर उसे कुछ ख्याले आया।
"अरे एक मिनट लता मैं अभी आता हूँ।” कहता हुआ विकास बाहर हो गया। लता दरवाजे से उसे देखती रह गई।
विकास ने गाड़ी से एक पैकिट निकाला और फिर वापिस आ गया। उसने वह मेज पर डाला...और चटकनी चढ़ा दी।
“ये क्या करते हो।” लता एकदम घबरा गई।
कमाल है...एक तरफ आराम करने को कहती हो...दूसरी तरफ दरवाजा बन्द भी नहीं करने देती।” विकास ने बड़ी अदा से कहा। इस समय वह अपने जूते उतार रहा था।
“ओह सॉरी।" लता ने कहा और रसोई में चली गई। विकास आराम से पलंग पर लेट गया...उसने आंखें बन्द कर ली।
लता ने दो कप चाय बनाई। प्लेटों में नमकीन व बिस्कुट रखे और लाकर मेज पर सजा दिया।
“विकास लो चाय पियो।” लता ने कही। लेकिन बिकास पर कोई असर नहीं पड़ा।
"अरे ये तो सो गया...अब क्या करूं?" संता बड़बड़ाई।
लता पलंग के पास खड़ी हुई और दो-तीन आवाज लगायीं, पर विकास पर कोई असर नहीं पड़ा। लता ने धीरे से विकास का हाथ हिलाया अचानक ही लता विकास के ऊपर गिर पड़ी। विकास ने उसे दोनों बांहों में भर लिया।
"ऐ क्यों करते हो, पागल हो गये हो।” लता चीख उठी।
"ओह सॉरी लता।” विकास ने उसे छोड़ते हुये कहा-“मैं तो। सपना देख रहा था।
"कैसा सपना देख रहे थे।"
"तुम्हारा ही सपना थी लता...नाराज तो नहीं हो।” विकास ने पूछा।
"नहीं...चलो चाय पियो।” लता सोफे के पास चली गई। उसने एक कप विकास की ओर बढ़ा दिया। दूसरा कैंप खुद लेकर।
सोफे पर बैठ गई। दोनों चुपचाप चाय पीने लगे। विकास चोर नजरों से लता को देखता जा रहा था।
विकास जानना चाहता था कि उसकी हरकत से लता कहीं नाराज तो नहीं है। अचानक विकास को पैकेट का ख्याल आया।
“अरे लता वो पैकिट कहाँ है।" विकास ने पूछा।
"ये है...।" लता ने दूसरे सोफे पर इशारा किया। अभी तक दोनों चाय पी चुके थे। लता ने बर्तन उठाये और रसोई में चल दी।
जब लता वापिस आई तो विकास ने लता से कहा-"लता इसे खोलो।" लता ने धड़कते दिल से पैकिट खोला...उसमें एक बड़ी प्यारी नीले रंग की नाइटी-चमक रही थी।
"कैसी है।” विकास ने लता को चुप देखकर पूछा।
अच्छी है।"
“तुम्हें पसन्द आई।"
"सुन्दर चीज हर किसी को पसंद आती है। लता ने सीधे से स्वर में कह दिया।
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