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अजनबी

राजहंस

प्रकाशक : धीरज पाकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :221
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15358
आईएसबीएन :0

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राजहंस का नवीन उपन्यास

"एक कागज दीजिये।" लता ने विकास से कहा।

"क्या...तुम कागज का क्या करोगी?"

"देखती हूं टाइप कर सकती हूं या नहीं।”

"तुम्हारा दिमाग तो खराब हैं हो गया...क्या मशीन तोड़ने का इरादा है।"

"अगर टूट भी गई तो तुम जैसे करोड़पति पर क्या असर पड़ना है।" कहते हुये लता ने खुद ही पास पड़ा एक सफेद पेपर लिया और मशीन में लगा दिया। फिर मशीन पर उसके हाथ चलने लगे।

विकास लता की जिद्द से परेशानी में पड़ गया। वह सोचने; * लगा आज इसने नुकसान जरूर करना है पर जबलता को तेजी से हाथ चलाते देखा तो उठकर लता के पास पहुंच गया। उसने जब लता को टाइप करते देखा तो वह आश्चर्य से भर उठा। लता की स्पीड विकास से भी ज्यादा थी।

"तो तुम मुझे बेवकूफ बना रही थीं।" विकास ने लता की। पीठ पर एक हाथ जमा दिया।

लता खिलखिला कर हंसने लगी।

"तुमने टाइप कब सीखी।” विकास ने पूछा।

"मैं शाम के समय में टाइप सीखती रही हूं।”

"ओ...गुड अब सब फिट हो गया।” विकास अपने काम में लग गया।

आज डेढ़ माह के बाद मुकेश को हास्पिटल से छुट्टी मिली थी। इस डेढ़ माह के समय में एक बार भी वह लता का मुंह नहीं देख पाया था जबकि उसकी नजरें डेढ़ महीने तक दरवाजे पर ही लगी रहीं थीं। शायद लता को किसी ने बता दिया हो कि उसका मुकेश अस्पताल में है पर रोज ही उसे निराशा का सामना करना पड़ा था।

कभी-कभी तो मुकेश घबरा जाता, कहीं मामी ने सती की शम्दी ही न कर दी हो। एक मजबूर औरत कैसे किसी का प्रतिकार कर सकती है। तय यह सोचतो अगर उस दिन वह लता की बात मान लेता तो शायद आज इस दशा पर न पहुंचता। ये सब लता के दिल से निकली बहुआयें ही हैं जिन्होंने उसे अस्पताल में ला पटका।

इहीं विचारों में खोया मुकेश अस्पताल के गेट पर खड़ा था। वह सोच नहीं पा रहा था किं कहाँ जाये। एक तरफ उसका मन था किं पहले वो अपने घर जाये लेकिन लता की याद उसे लता के घर जाने के लिये मजबूर कर रही थी।

आखिरी बार जब मुकेश को लता मिली थी तो उसके सामने। ऐसी समस्या रख दी थी जिसे हल कर पाना मुकेश के बस की बात नहीं थी। वह एक शरीफ घर का लड़का था पर यदि वह एक बार उस रास्ते को अपना भी लेता तो उसका कोई कुछ बिगाड़ने पाता। किन्तु वह यह कभी भी नहीं चाहता था कि उसका पहला प्यार जो अन्तिम भी थी कहीं बदनाम हो, कोई उस पर उंगली उठाये। इसी कारण उस दिन उसने सती को वापिस भेज दिया था। हालांकि सती नाराज भी हो गई थी और तब से मुकेश लता की। शक्ल देखने से भी तरस गया था।

मुकेश के कदम बरबस ही लता के घर की तरफ बढ़ गये। रास्ते भर मुकेश लता के विषय में सोचता रहा...अचानक लता अपने सामने पाकर किस प्रकार घबरा जायेगी...पता नहीं डेढ़ महीने

में लता का रूप कितना निखर आया होगा...जो एक दिन भी बिना मिले नहीं रहते थे...उसने डेढ़ महीने का समय किस प्रकार काटा होगा।

जब मुकेश की तन्द्रा छूटी तो वह लता के दरवाजे पर खड़ा था। आज तक कभी मुकेश लता के घर नहीं आया था। पहली बार आने की वजह से उसके दिल में कछ घबराहट हो रही थी। साहस करके मुकेश ने दरवाजा खटखटाया-

"कौन है?" अन्दर से जनानी आवाज आई और फिर भारी कदमों की आहट पास आने लगी।

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