सामाजिक >> अजनबी अजनबीराजहंस
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राजहंस का नवीन उपन्यास
“आपको सब काम मैं कर दूंगा।" उसने बड़े-बूढ़ों के स्वर में कहा।
“तुम तो मुझसे भी छोटे हो।
“हाँ...ये तो बात है...पर अंकल मैं सड़क के किनारे-किनारे चलता हैं। जब सड़क पार करनी होती है तो दोनों तरफ अच्छी तरह देखकर पार करता हूं।"
मुकेश को जोर की हंसी आई, हंसते हुये बोला-“तो क्या हम सड़क के बीच में चल रहे थे।”
“मुझे क्या पता?"
तभी दरवाजे पर बुढ़िया की आवाज सुनाई दी-"अरे गुड्डू
तुम अभी यहीं बैठे हो।”
अभी आया दादी।" गुड्डू ने दादी से कहा फिर मुकेश को देखते हुये बोला-“अरे अंकल आपने तो चाय भी नहीं पी।"
"हाँ वो चाय कैसे पीता...तू तो बात बनाने लग गया होगा।" फिर मुकेश से बोली-“मुकेश बेटा चाय पी लो...ये तो बड़ा बातूनी : लड़का है...सारे दिन कान खाये रहता है।"
“मुझे तो बड़ा प्यारो लगता है।" मुकेश ने गुड्डू के सिर पर
हाथ फेरते हुये कहा।
बुढ़िया ने हाथ में पकड़ी हुई चिट्ठियां मुकेश को थमाते हुये कहा-“बेटा ये हैं तुम्हारी सब चिट्ठियां जो आई हैं।”
मुकेश ने चिट्ठियां ले लीं। बुढ़िया चिट्ठी देकर चली गई, मुकेश ने एक-एक चिट्ठी खोलकर पढ़नी शुरू की पर उनमें कोई , भी चिट्ठी लता की नहीं थी। अब वह आखिरी लिफाफा खोल रहा
था। दिल से ईश्वर से प्रार्थना कर रहा था कि वह ख़त लता का हो पर ईश्वर को तो कुछ और ही मंजूर था।
वह एक इण्टरव्यू का लिफाफा था जिसमें उसे तत्काल ही बुलाया था। मुकेश के चेहरे पर परेशानी छलक आई पर पूरा खत पढ़ते-पढ़ते उसका चेहरा प्रसन्नता से भर उठा।
इण्टरव्यू की तारीख उन्नतीस थी और आज अट्ठाइस तारीख थी। वह इण्टरव्यू दे सकता था पर तव जव अभी से जाने की तैयारी शुरू कर दे।
मुकेश ने फटाफट अपने कपड़े अटैची में डालने शुरू कर दिये। वैसे ही जब से उसने लता के विषय में सुना था उसका मन हो रहा था कि वह इस शहर को तुरन्त छोड़ दे क्योंकि कदम-कदम पर लता की याद उसे झकझोर रही थी। भगवान ने उसकी सुन ली थी। . .
मुकेश ने सामान बांधा और फिर अपनी मकान मालकिन के पास पहुंचा। उसे देखते ही बुढ़िया बोली-“आओ बेटा कहाँ के लिये तैयार हुये।”
"मां जी मैं इण्टरव्यू देने जा रहा हूँ।” मुकेश ने बताया।। "कब जाना है।" "बस अभी जा रहा हूं।” "अरे बेटा अभी तो तुम लम्बी बीमारी से लौटे हो...और
अभी फिर ज़ाने लगे।"
“मां जी अगर आज नहीं गया...तो नौकरी मिलनी मुश्किल हो जायेगी...आप तो जानती हैं कि नौकरी की आजकल कितनी परेशानी है।"
"कब बुलाया है?"
“मां जी कल आफिस में हाजिर होना है।"
"ओह...तब तो आज ही जाना पड़ेगा...कुछ देर ठहरो...सब्जी बन गई है...मैं रोटी सेंक देती हूँ।” बुढ़िया ने सब्जी का भगोना चूल्हे से उतारते हुये कहा।
"अभी तो खाने की भूख नहीं है। असल में मुकेश खाना खाने से हिचकिचा रहा था पर तभी गुड्डू मास्टर अन्दर से दौड़ते हुये आ पहुंचे।
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