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अजनबी

राजहंस

प्रकाशक : धीरज पाकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :221
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15358
आईएसबीएन :0

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राजहंस का नवीन उपन्यास

"दादी मैं भी अंकल के साथ खाना ख़ाऊंगा।” गुड्डू ने कहा, फिर मुकेश की तरफ देखते हुये बोला-"बैठिये न अंकल, मैंने आपकी सब बातें सुन ली हैं। जव आप नौकरी से आयेंगे तो हमारे लिये अच्छा सा खिलोना लेकर आइयेगा।"

"जरूर हम तुम्हारे लिये एक प्यारी सी गुड़िया लेकर

आयेंगे।" मुकेश ने हंसते हुये कहा।

"धत्त अंकल...गुड़िया से तो लड़की खेलती है...हम तो बड़े, होकर हवाई जहाज चलायेंगे।”

तभी बुढ़िया ने खाना लगा दिया। दोनों ने खाना खाया। मुकेश ने हाथ धोये। बुढ़िया को नमस्ते की, गुड्डू को प्यार किया। और अपने कमरे में आ गया। कमरे से अटैची उठाई और स्टेशन की तरफ चल दिया।

आज लता बहुत खुश थी और खुश क्यों न होंती अब उसे नौकरी मिल गई थी। एक नामी फैक्ट्री के मैनेजर की सेकेट्री की नौकरी। पांच सौ रुपया माहवार के साथ फ्लैट मुफ्त और क्या चाहिये था उसे।

अभी-अभी आफिस से वापिस आई थी गुनगुनाते हुये अपने लिये चाय तैयार कर रही थी कि तभी गाड़ी को हार्न सुनाई दिया। लता ने खिड़की से झांका वास्तव में वह विकास की ही गाड़ी थी। विकास गाड़ी लॉक कर रहा था।

लता ने एक कप पानी और अधिक बढ़ा दिया। तभी कालबेल बज उठी।

लता ने दरवाजा खोला। !

"हैलो...लता...खुश हो न।” विकास ने अन्दर आते हुये कहा।

"हाँ विकासे खुश क्यों नहीं होऊंगी। तुम मेरे लिये कितना कर रहे हो...समझ में नहीं आता...इसका बदला किस प्रकार, चुकाऊंगी।" लता विकास के अहसान तले दबी थी।

"अरे छोड़ो न बेकार की बातें...देखो लता अब अगर तुमने इस प्रकार बातें की तो मैं तुम्हारे पास आना बन्द कर दूंगा।” विकास। ने नाराजगी भरे स्वर में कहा।

“अच्छा चलो अब नहीं कहूंगी।" कहते हुये लता किचन की तरफ चल दी। जल्दी ही वह चाय की ट्रे हाथ में लिये चली आ रही थी।

"अरे बड़ी जल्दी चाय बन गई।” लता के हाथ में ट्रे देख विकास बोल उठी।

"चाय तो में तुम्हारे आने से पहले ही चढ़ा चुकी थी।” लता ने कुर्सी पर बैठते हुये कहा। फिर उसने दो कपों में चाय तैयार की एक कप विकास को थमाया और दूसरा खुद लेकर बैठ गई।

"इसके बाद क्या प्रोगाम है?" विकास ने लता की आंखोंमें झांकते हुये कहा।

“अपना तो कोई प्रोगाम नहीं है।” लता ने चाय का सिप लेते हुये कहा है।

"चलो फिर तैयार हो जाओ।"

"क्या मतलब?" लता विकास की बात समझ नहीं पाई।

"आज तुम्हें बड़े लोगों की जन्नत की सैर कराई जाये।”

"अरे भई उस जन्नत का कुछ नाम भी तो होगा।"

"हाँ...हाँ...उसका नाम भी है...पर वो सब वहीं चलकर। बतायेंगे। अभी तो तुम बस फटाफट तैयार हो जाओ।” विकास के चेहरे पर मुस्कुराहट थी।

"जैसी आपकी इच्छा।” लता ने कहा और उठ खड़ी हुई। अब तक दोनों ने चाय खत्म कर ली थी। लता ने चाय के बर्तन उठाये और किचन की ओर चल दी। बर्तन रखने के बाद लता ने अलमारी से नीले रंग की साड़ी उससे मैच करता लाज निकाला और बाथरूम की ओर चल दी।

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